शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

पराश्रित












पराश्रित
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कभी करने लगता हूँ
खूब विश्वास कि लोग
कहने लगते 'अन्धविश्वासी'

कभी करने लगता हूँ
इतना शक कि लोग
समझते झक्की-शक्की...

मेरी अपनी राय
मेरी अपनी पसंद
मेरे अपने विचार
दम तोड़ते दिमाग के
मकड़िया जाल में
और मैं अकबकाया सा
दूसरों के विचारों पर
देता रहता हूँ दाद..
जैसे हो वह मेरी आवाज़....!


पैसे से मिल जाती सुविधा
मन-चाही चीज़ें मिल जातीं
मिल जाती हैं ढेरों खुशियाँ
बोलो तुमको पाऊं कैसे
जेब में पैसा खूब है लेकिन
दिल में डर है, प्यार नही है...

कई चाँद थे सरे आसमां : अनुरोध शर्मा

कुमार मुकुल की वाल से एक ज़रूरी पोस्ट : अनुरोध शर्मा पहले पांच पन्ने पढ़ते हैं तो लगता है क्या ही खूब किताब है... बेहद शानदार। उपन्यास की मुख्...