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Sunday, May 20, 2018

व्यथित मन की पीड़ा


टायर पंचर बनाते हो न
बनाओ, लेकिन याद रहे
हम चाह रहे हैं तभी बना पा रहे हो पंचर
जिस दिन हम न चाहें
तुम्हारी ज़िन्दगी का चक्का फूट जाएगा
भड़ाम....
समझे!
कपड़े सीते हो न मास्टर
खूब सिलो, लेकिन याद रहे
हम चाह रहे हैं तभी सी पा रहे हो कपड़े
जिस दिन हम न चाहें
तुम्हारी ज़िन्दगी का कपड़ा फट जाएगा
चर्र...
समझे!
अलिफ़-बे पढ़ाते हो न
पढाओ, लेकिन याद रहे
हम चाह रहे हैं तभी पढ़ा पा रहे हो कायदा
जिस दिन हम न चाहें
तुम्हारी ज़िन्दगी की किताब के अक्षर
उड़ जायेंगे फुर्र...
समझे!
यह मत समझो कि धोखा देकर
जी लोगे सुख-चैन से यहाँ
हमारे लोग झाँक रहे हैं तुम्हारी रसोइयों में
क्या पकाया जा रहा है उन बर्तनों में
क्या खाया जा रहा है दावतों में
क्या पढ़ा जा रहा है
क्या लिखा जा रहा है
किस-किससे बतियाया जा रहा है
किस-किससे नहीं बतियाया जा रहा है
कब सोया जा रहा है
कब जागा जा रहा है
कितना बचा पाओगे और कब तक
हम खुद हत्या नहीं करते
कि आ जाएँ क़ानून और संविधान के दायरे में
ऐसी स्थिति बना देते हैं
कि गिरने लगती हैं धडाधड लाशें इतनी
कि हम गिनना भी ज़रूरी नहीं समझते
इस खेल में तुम भी माहिर थे
लेकिन अब तुम्हारा वक्त नहीं रहा
अब समय हमारा है
याद रखना......