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Tuesday, January 21, 2014

उत्तर खोजो श्रीमन जी...

एकदम से ये नए प्रश्न हैं
जिज्ञासा हममें है इतनी
बिन पूछे न रह सकते हैं
बिन जाने न सो सकते हैं
इसीलिए टालो न हमको
उत्तर खोजो श्रीमान जी....

ऐसे क्यों घूरा करते हो
हमने प्रश्न ही तो पूछा है
पास तुम्हारे पोथी-पतरा
और ढेर सारे बिदवान
उत्तर खोजो ओ श्रीमान...

माना ऐसे प्रश्न कभी भी
पूछे नही जाते यकीनन  
लेकिन ये हैं ऐसी पीढ़ी
जो न माने बात पुरानी
खुद में भी करती है शंका
फिर तुमको काहे छोड़ेगी
उत्तर तुमको देना होगा..
मौन तोडिये श्रीमान जी.....
               ----------------अ न व र सु है ल ---------

Sunday, January 19, 2014

रचना संसार : तुम क्या जानो....

रचना संसार : तुम क्या जानो....:
तुम क्या जानो जी तुमको हम  कितना 'मिस' करते हैं...
 तुम्हे भुलाना खुद को भूल जाना है  
 सुन तो लो, ये नही एक बहाना है  ...

तुम क्या जानो....




तुम क्या जानो जी तुमको हम 
कितना 'मिस' करते हैं...

तुम्हे भुलाना खुद को भूल जाना है 
सुन तो लो, ये नही एक बहाना है 
ख़ट-पद करके पास तुम्हारे आना है 
इसके सिवा कहाँ कोई ठिकाना है...

इक छोटी सी 'लेकिन' है जो बिना बताये 
घुस-बैठी, गुपचुप से, जबरन बीच हमारे 
बहुत सताया इस 'लेकिन' ने तुम क्या जानो 
लगता नही कि इस डायन से पीछा छूटे...

चलो मान भी जाओ, आओ, समझो पीड़ा मेरी 
अपने दुःख-दर्दों के मिलजुल गीत बनाएं 
सुख-दुःख के मलहम का ऐसा लेप लगाएं 
कि उस 'लेकिन' की पीड़ा से मुक्ति पायें...




----------------अ न व र सु है ल -----------

Monday, January 13, 2014

माल्थस का भूत

कितनी दूर से बुलाये गये 
नाचने वाले सितारे 
कितनी दूर से मंगाए गए 
एक से एक गाने वाले 
और तुम अलापने लगे राग-गरीबी 
और तुम दिखलाते रहे भुखमरी 
राज-धर्म के इतिहास लेखन में 
का नही कराना हमे उल्लेख 
कला-संस्कृति के बारे में...

का कहा, हम नाच-गाना न सुनते
तो इत्ते लोग नही मरते...
अरे बुडबक...
सर्दी से नही मरते लोग तो
रोड एक्सीडेंट से मर जाते
बाढ़ से मर जाते
सूखे से मर जाते
मलेरिया-डेंगू से मर जाते
कुपोषण से मर जाते
अरे भाई...माल्थस का भूत मरा थोडई है..
हम भी पढ़े-लिखे हैं
जाओ पहले माल्थस को पढ़ आओ...

अरे भाई कित्ता लगता है
एक जान के पीछे पांच लाख न...
विपक्ष भी सत्ता में होता तो
इतना ही न ढीलता...
हम भी तो दे रहे हैं
फिर काहे पीछे पड़े हो हमारे...

अपने गाँव-गिरांव के आम जन को
हम दिखा रहे नाच, सुना रहे गाने
मिटा रहे साथ-साथ, राज-काज की थकावटे
राज-काज आसान काम नही है बचवा...
न समझ आया हो तो जाओ
जो करते बने कर लो....
------------------------अ न व र सु है ल --------------

Saturday, January 4, 2014

खुश हो जाते हैं वे ...






















खुश हो जाते हैं वे 
पाकर इत्ती सी खिचड़ी 
तीन-चार घंटे भले ही 
इसके लिए खडा रहना पड़े पंक्तिबद्ध ...

खुश हो जाते हैं वे
पाकर एक कमीज़ नई
जिसे पहनने का मौका उन्हें
मिलता कभी-कभी ही है

खुश हो जाते हैं वे
पाकर प्लास्टिक की चप्पलें
जिसे कीचड या नाला पार करते समय
बड़े जतन से उतारकर रखते बाजू में दबा...

ऐसे ही
एक बण्डल बीडी
खैनी-चून की पुडिया
या कि साहेब की इत्ती सी शाबाशी पाकर
फूले नही समाते वे...

इस उत्तर-आधुनिक समय में
ऐसे लोग अब भी
पाए जाते हैं हमारे आस-पास
और हम
अपनी सुविधाओं में कटौती से
हैं कितने उदास..........
-----------अ न व र सु है ल ----------

Friday, January 3, 2014

किधर जाएँ...

के रविन्द्र की पेंटिंग 
और कितना दर्द दोगे 

और कितनी चोट खाएं 


और कब तक


सहनी पड़ेंगी 


अनवरत ये यातनाएं..



अब तो जी घबरा रहा,


सुनकर तुम्हारी


मरहमी सी घोषणाएं....



हर तरफ से घिर चुके अब, 


ये बता दो


भाग कर 


हम किधर जाएँ ....

-----अ न व र सु है ल -----