Total Pageviews

Thursday, June 21, 2018

उम्मीदें

Related image
जिससे भी उम्मीदें रक्खो
जितनी भी उम्मीदें बांधो
कुछ ही दिन में, इक झटके से
तड़-तड़ करके टूटी जाए
उम्मीदों की लम्बी डोर
रात की स्याही गाढ़ी होवे
दूर चली जावे है भोर
हारने वाले दुबके बैठे
जीते लोग मचाएं शोर
बहुत चकित हैं वे सब हमसे
दुःख इतने हैं फिर भी कैसे
पास हमारे बच जाती हैं
फिर-फिर जीने की उम्मीदें
एक जख्म के भरते-भरते
दूजा वार उससे भी घातक
लेकिन हिम्मत देखो यारों
सब्र का दामन थाम के बैठे
जख्मों की पीड़ा को पीकर
सीने में ईमान की ज्वाला
होठों पर इक गीत सजाकर
निकले हैं सब घर से बाहर
देख हमारी हिम्मत-ताकत
जल-भुन कर वे राख हो जाते
(19 जून 2018)

Wednesday, June 20, 2018

वाजिब है मारा जाना तुम लोगों का

Image result for killed kisan

तुम लोगों का मारा जाना वाजिब है
भूख और अभाव से नहीं मरे
तो गोलियां हैं ही हमारे पास
हम तुम्हें मरने में मदद करने के लिए
दिन-रात बनाते हैं योजनायें 
कितने ज्यादा विकल्प हैं तुम्हारे पास
एडियाँ रगड़ कर मर सकते हो
सिसक-सिसक के भी मर सकते हो
फंदा डाल झूल सकते हो किसी पेड़ पर
अगर फिर भी नहीं मर पाए
तो हमारी चौबीस घंटे खुली हेल्पलाइन हैं ही
हम मदद के लिए तत्पर हैं
तुम सिर्फ मजदूर नहीं हो सकते
तुम सिर्फ किसान नहीं हो सकते
तुम्हें होना होगा हिन्दू या मुसलमान
आदिवासी या दलित या फिर स्त्री
इससे तुम्हें विकल्प चुनने में होगी आसानी
क्योंकि खालिस इंसानों के लिए
हमारी हेल्पलाइन अभी अपडेट नहीं है
इसके लिए कुछ रोज़ करना होगा इंतज़ार
रोटी और रोज़गार मत मांगो
हम तुम्हें कितना सस्ता डाटा दे रहे हैं
नई पीढ़ी समझदार है
इसकी हमें हर चुनाव में दरकार है
हमें ख़ुशी है की यह नई पीढ़ी
अकारण मरने-मारने के लिए हो रही तैयार है
(20 जून 2018)

Saturday, June 9, 2018

दोस्तियाँ और कडुवाहटें



क्या हो गया हम सभी लोगों को
हम तो ऐसे नहीं थे 
एक दूसरे से कर लेते थे
ऐसे बेदर्द मजाक कि बुरा लगना लाजिमी होता
लेकिन कोई कभी नहीं मानता था बुरा
हम अक्सर हंसा करते थे
निकालते थे एक दुसरे की कमियाँ
खोजा करते थे इक-दूजे के जात-धरम में बुराइयां
तानों-उलाहनों के वार यूँ ही झेल जाते थे
हम कितना जल्दी भूल जाया करते थे
रिश्तों में पैदा हुई खटास को
इस तरह फिर से मिल जाते थे जैसे शिकंजी-शरबत

चाहे कुछ भी हो जाए 
हम फिर-फिर मिलते ज़रूर थे
और इस तरह मिलते थे
जैसे मिले हों एक मुद्दत बाद
रिश्तों में एक नई ताजगी के साथ

अब इधर कुछ अरसे से
हम मिलते तो हैं लेकिन वैसे बेबाक नहीं हो पाते
एक-दूजे को देखते कि आँखों में परायापन लिए
जाने क्यों इधर इस बीच
हम अक्सर बात-बेबात, बाल की खाल निकालकर
झगड़ पड़ते और उस मुद्दे को दफ़न करने का
नहीं करते कोई प्रयास
हम चाहते हैं कि बची रहे तकरार की गुंजाईश

कितने तीखे होते जा रहे हैं हम
दोस्तियों में गालियाँ अब बर्दाश्त नहीं करते हम
गालियाँ हमें वजूद में पेवस्त होती लगती हैं
हम आक्रामक भी होते जा रहे हैं और हिंसक भी
सयाने कहते हैं कि दोस्ती नजरिया गई है
कोई है गुनी जो नज़र उतारने का जानता हो टोटका
कि इस तरह जीने कितना बेमजा है यार!