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Wednesday, October 24, 2012

saboot / सबूत

सबूत कर रहा हूं इकट्ठा
वो सारे सबूत
वो सारे आंकडे
जो सरासर झूटे हैं
और
जिसे बडी खूबसूरती से
तुमने सच का जामा पहनाया है
कितना बडा छलावा है
मेरे भोले-भाले मासूम जन
ब-आसानी आ जाते हैं झांसे में

ओ जादूगरों
ओ हाथ की सफाई के माहिर लोगों
तुम्हारा तिलस्म है ऎसा
कि सम्मोहित से लोग
कर लेते यकीन
अपने मौजूदा हालात के लिए
खुद को मान लेते कुसूरवार
खुद को भाग्यहीन......

Tuesday, October 23, 2012

JUNOON : K Ravindra ke liye

जुनून
(चित्रकार के रवीन्द्र के लिए)
होना चाहिए जुनून
तभी मिल सकता है सुकून
वरना किसे फुर्सत है
किसी का नाम ले
तुम्हारा जुनून ही
तुम्हारी पहचान है
जो देती है तुम्हें
नित नई ऊंचाईयां
नित नई उडान.....

Sunday, October 21, 2012

आम्-आदमी

उसके बारे में प्रचलित है कि वह थकता नहीं वह हंसता नहीं वह रोता नहीं वह सोता नहीं उसके बारे में प्रचलित है कि डांटने-गरियाने का उस पर असर नहीं होता बडा ही ढीठ होता है चरित्र इनका पिन चुभोने से या कोडा मारने से उसे दर्द नहीं होता उसे लगती नहीं ठंड गरमी और बरसात कहते हैं कि उसकी चमडी मर चुकी है या मर चुकी है हमारी सम्वेदना.. कहा नहीं जा सकता.. तय नहीं उसके लिये काम के घंटे तय नहीं उसका वेतन तय नहीं उसकी छुटिटयों के दिन तय नहीं उसकी सुविधाएं और पर्क्स! कहते हैं वह है पंक्ति का आखिरी आदमी कहते हैं बना उसकी लिये संविधान कहते हैं मानवाधिकार और श्रम कानून उसकी हिफ़ाज़त के लिये हैं बनाए गए संसद, अदालतें और अफसरों का जमघट कहते हैं उसी की सलामती के लिए हैं हां, एक बात अच्छी तरह मालूम है उसे कि चुनाव के पहले बढ जाती है उसकी कीमत बदल जाता है लोगों का नज़रिया उसके प्रति और मतदान के बाद फिर हो जाता वो घूरे का घूरा... आधा-अधूरा....