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Tuesday, May 28, 2013

खदान का अन्धेरा


मेरी कविताओं में
नही दीखते उड़ान भरते पंछी
नहीं दीखता शुभ्र-नीला आकाश
नही दीखते चमचमाते नक्षत्र
नही दीखता अथाह विशाल समुद्र
नही दीखता सप्तरंगी इन्द्रधनुष
क्या ऐसा इसलिए है
कि भूमिगत कोयला खदान के अँधेरों में
खो गयी मेरी कल्पना शक्ति
खो गयी मेरी सृजनात्मक दृष्टि
खो गयी मेरी अभिव्यक्ति....!

Sunday, May 26, 2013

अद्भुत कला

अद्भुत कला है

बिना कुछ किये

दूजे के कामों को

खुद से किया बताकर

बटोरना वाहवाही...

जो लोग

महरूम हैं इस कला से

वो सिर्फ खटते रहते हैं

किसी बैल की तरह

किसी गधे की तरह

ऐसा मैं नही कहता

ये तो उनका कथन है

जो सिर्फ बजाकर गाल

दूसरों के किये कामों को

अपना बताकर

गिनाते अपनी उपलब्धियां...

क्या करूँ

मुझमें ऐसी कोई खासियत नही

ऐसे कोई गुण नही

इसीलिये हमेशा की तरह

खटते रहता हूँ

पदते रहता हूँ मैं ....