मंगलवार, 28 मई 2013

खदान का अन्धेरा


मेरी कविताओं में
नही दीखते उड़ान भरते पंछी
नहीं दीखता शुभ्र-नीला आकाश
नही दीखते चमचमाते नक्षत्र
नही दीखता अथाह विशाल समुद्र
नही दीखता सप्तरंगी इन्द्रधनुष
क्या ऐसा इसलिए है
कि भूमिगत कोयला खदान के अँधेरों में
खो गयी मेरी कल्पना शक्ति
खो गयी मेरी सृजनात्मक दृष्टि
खो गयी मेरी अभिव्यक्ति....!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कई चाँद थे सरे आसमां : अनुरोध शर्मा

कुमार मुकुल की वाल से एक ज़रूरी पोस्ट : अनुरोध शर्मा पहले पांच पन्ने पढ़ते हैं तो लगता है क्या ही खूब किताब है... बेहद शानदार। उपन्यास की मुख्...