के रवीन्द्र की पेंटिंग |
उसके जाते ही
बदल गए उसके लोग
करते थे जो निश-दिन
उसका कीर्ति-गान
उनका था ऐसा आचरण
जैसे वे हों खानदानी भाट-चारण
जबकि उसने
जो भी कदम उठाये
गलत ही उठाये
लेकिन उसके मुरीद
साधे रहे चुप्पी
कहीं नहीं था कोई विरोध
उसके डर से
तथा-कथित योद्धाओं के तलवार
जंग खाते रहे म्यानों में
आम-जन को बहलाए रखे
उलटे-सीधे बयानों में..
आज वही लोग
उसके जाने के बाद
खोले बैठे निंदा-पुराण
गरियाते उसको सरे-आम!
जानती है जनता सब-कुछ
ऐसे लोगों को पहचानती बहुत-कुछ
और याद रखती है
शोषण में सहायक
ऐसे विभीषणों को....
सार्थक पोस्ट .आभार
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ReplyDeleteहम हिंदी चिट्ठाकार हैं
धन्यवाद शिखा कौशिक साहेब...
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