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Tuesday, February 26, 2013

आतंकी











जाने क्यों आजकल


जब भी

देखता / सुनता हूँ ख़बरें

तो धड़कते दिल से

यही सुनना चाहता हूँ

न हो किसी आतंकी घटना में

किसी मुसलमान का हाथ...



अभी जांच कार्यवाही हो रही होती है

कि आनन्-फानन

टी वी करने लगता घोषणाएं

कि फलां ब्लास्ट के पीछे है

मुस्लिम आतंकवादी संगठन...



बड़ी शर्मिंदगी होती है

बड़ी तकलीफ होती है

कि मैं भी तो एक मुसलमान हूँ

कि मेरे जैसे

अमन-पसंद मुसलमानों के बारे में

काहे नहीं सोचते आतंकवादी...

Thursday, February 21, 2013

खो गया सौन्दर्य-शास्त्र

मेरे यह सब कहने का मतलब यह नहीं है कि आज के जो भी जन आंदोलन हैं उनसे जुड़ी कविताएं एकदम नहीं लिखी जा रही हैं। ऐसी कविताएं लिखी जा रही हैं, पर वे कविताएं और कवि, हिन्दी कवि


की मुख्यधरा से अलग हाशिये पर हैं और हाशिये की जिन्दगी की कविता लिखते हैं।

अभी हाल में लीलाध्र मंडलोई के सम्पादन में 25 कवियों की कविताओं का एक संग्रह आया है, जिसका नाम है कविता का समय। उस संग्रह में अनेक कवि ऐसे हैं जो जीवन की वास्तविक समस्याओं और

वास्तविकता की मार्मिक कविताएं लिखते हैं और वे प्रयत्नपूर्वक हिन्दी कविता की मुख्यधरा से अपनी अलग पहचान रखते हैं।

उस संग्रह में शामिल एक कवि हैं अनवर सुहैल। उन्होंने एक कविता खान मजदूरों पर लिखी है। उस कविता में वे एक जगह कहते हैं-

‘‘मेरी कविताओं में नहीं है

कोमलकांत पदावली,

रस-छंद, अलंकार मुक्तभाषा

क्योंकि मैं एक खनिक हूं

खदान में खटते-पड़ते,

खो गया सौन्दर्य-शास्त्र’’

इस संग्रह की कविताएं पढ़ते हुए कोई भी व्यक्ति यह महसूस करेगा कि कविता मनुष्यता की मातृभाषा है। जहां भी मनुष्यता संकट में होती है, वहां कविता अपनी उपस्थिति से उस संकट का सामना करने में मनुष्य की मदद करती है। इन कविताओं के बारे में दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि अध्किांश कविताएं पाठकों से सीधे संवाद करती हैं। उनमें से किसी कविता को किसी दुभाषिए की जरूरत नहीं है। यह कविता का लोकतन्त्र है, जो कविता के अनुभवों और मुद्दों में ही नहीं, भाषा में भी मौजूद है।

युवा सम्वाद जनवरी 2011 अंक में मैनेजर पाण्डेय से लिए गए साक्षात्कार का एक अंश

Monday, February 18, 2013

सफल पुरुष


सफल पुरुष


होता है एक अच्छा अभिनेता भी...

सफल पुरुष

होता है जिद्दी, सनकी, आत्म-केंद्रित...

सफल पुरुष

... रखता है जिस सीढ़ी पर कदम

उसके नीचे के पायदान तोड़ देता है

ताकि चढ़े न कोई और

पहुंचे न कोई और

उन बुलंदियों तक

जहां गाडना है झंडे

सफल पुरुष को...

भूल जाता है सफल पुरुष

अपने बीते दिन

पुराने दोस्त

ब-आसानी

इसी लिए तो है वो एक सफल पुरुष..

Wednesday, February 6, 2013

जालिमों होशियार!


पुराने लोग कहते हैं


भरता है पाप का घडा

एक दिन ज़रूर

अन्याय का होता है अंत

और मजलूम जनता के दुःख-दर्द

दूर हो जाते हैं उस दिन...



पुराने लोग कहते हैं

इंसान को दुःख से

नहीं चाहिए घबराना

कि सोना भी निखरता है

आग में तप-कर

रंग लाती है हिना

पत्थर में घिस जाने के बाद....



पुराने लोग कहते हैं

दुनिया की दुःख-तकलीफें

सब्र के साथ सह जाना चाहिए

इससे परलोक संवारता है...



पुराने लोगों की बातें

समझ में नहीं आतीं

नई पीढ़ी को अब

उनमें नहीं है

चुपचाप

अत्याचार सहने का

नपुंसक विवेक

यही कारण है

नई पीढ़ी ने गढ़ लिए

नए मुहावरे

नए हथियार

जालिमों होशियार!

Sunday, February 3, 2013