(यथार्थ प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित और मप्र हिंदी साहित्य सम्मलेन भोपाल से वागीश्वरी सम्मानित कथा संग्रह ‘गहरी जड़ें’ पुस्तक पर डॉ रमाकांत शर्मा जी के विचार)
अनवर सुहैल अनुभूत सत्य को अभिव्यक्त करने वाले कथाशिल्पी हैं । उनका कहानी संग्रह : गहरी जड़ें : की कहानियों से गुज़रना मुस्लिम समाज के बहाने पूरे भारतीय सामाजिक परिवेश से रू ब रू होना है । सामाजिक विसंगतियों , विडम्बनाओं , रूढ़ियों , अंधविश्वासों और अंतर्विरोधों के साथ मध्यवर्गीय दुर्बलताओं के बीच विकसित होती हुईं ये कहानियाँ प्रतिरोध के स्वर को मुखरित करती हैं । इस अर्थ में सुहैल की कहानियां अपने समकाल को रचती हुई गहरे जीवनानुभव से संवाद भी कायम करती हैं । आतंकवादी मनोवृत्ति का सच , दहशतगर्दी , फिरकापरस्ती , परिवार में बेवाओं की दशा , अल्पसंख्यक समुदाय का दुःख , इंसानी रिश्तों को बचाये रखने की जद्दोजहद , मुसलमान होने के भारतीय सन्दर्भ , बढ़ते बाज़ारवाद , उपभोक्तावादी संस्कृति के विकार और ख़तरे इस इस कथाकार के मुख्य सरोकार हैं ।
अनवर सुहैल की नीला हाथी , ग्यारह सितम्बर के बाद , चहल्लुम , पुरानी रस्सी , दहशतगर्द और नसीबन जैसी कहानियाँ उनकी खुली आँख की पैनी नज़र के साथ गहरी समझ की साक्षी हैं। सघन संवेदना जहां प्राणोर्जा की तरह बसी है । ये कहानियाँ कथारस में पगी हुईं सहज , स्वाभाविक और स्वतःस्फूर्त कहानियाँ हैं । यहाँ आप बोलचाल की भाषा और मुहावरेदानी के सम्मोहन से ज़रूर प्रभावित होंगे । पाठक को घेर कर बांधे रखने की अद्भुत कला सुहैल की कहानियों की खूबी है । उनका कवि भी इनमें कहीं कहीं उनके कथाकार के साथ मौजूद मिलेगा । प्रेमचंद और भीष्म सहानी की कथा परम्परा को विकसित करती है * गहरी जड़ें *0की कहानियाँ । कहानीकार को आत्मिक बधाई देते हुए इस कथाकृति का स्वागत !
- डॉ. रमाकांत शर्मा
अनवर सुहैल अनुभूत सत्य को अभिव्यक्त करने वाले कथाशिल्पी हैं । उनका कहानी संग्रह : गहरी जड़ें : की कहानियों से गुज़रना मुस्लिम समाज के बहाने पूरे भारतीय सामाजिक परिवेश से रू ब रू होना है । सामाजिक विसंगतियों , विडम्बनाओं , रूढ़ियों , अंधविश्वासों और अंतर्विरोधों के साथ मध्यवर्गीय दुर्बलताओं के बीच विकसित होती हुईं ये कहानियाँ प्रतिरोध के स्वर को मुखरित करती हैं । इस अर्थ में सुहैल की कहानियां अपने समकाल को रचती हुई गहरे जीवनानुभव से संवाद भी कायम करती हैं । आतंकवादी मनोवृत्ति का सच , दहशतगर्दी , फिरकापरस्ती , परिवार में बेवाओं की दशा , अल्पसंख्यक समुदाय का दुःख , इंसानी रिश्तों को बचाये रखने की जद्दोजहद , मुसलमान होने के भारतीय सन्दर्भ , बढ़ते बाज़ारवाद , उपभोक्तावादी संस्कृति के विकार और ख़तरे इस इस कथाकार के मुख्य सरोकार हैं ।
अनवर सुहैल की नीला हाथी , ग्यारह सितम्बर के बाद , चहल्लुम , पुरानी रस्सी , दहशतगर्द और नसीबन जैसी कहानियाँ उनकी खुली आँख की पैनी नज़र के साथ गहरी समझ की साक्षी हैं। सघन संवेदना जहां प्राणोर्जा की तरह बसी है । ये कहानियाँ कथारस में पगी हुईं सहज , स्वाभाविक और स्वतःस्फूर्त कहानियाँ हैं । यहाँ आप बोलचाल की भाषा और मुहावरेदानी के सम्मोहन से ज़रूर प्रभावित होंगे । पाठक को घेर कर बांधे रखने की अद्भुत कला सुहैल की कहानियों की खूबी है । उनका कवि भी इनमें कहीं कहीं उनके कथाकार के साथ मौजूद मिलेगा । प्रेमचंद और भीष्म सहानी की कथा परम्परा को विकसित करती है * गहरी जड़ें *0की कहानियाँ । कहानीकार को आत्मिक बधाई देते हुए इस कथाकृति का स्वागत !
- डॉ. रमाकांत शर्मा