अनवर सुहेल का कहानी संग्रह शाकिर उर्फ ......
मेरे सामने है जो अभी-अभी प्रकाशित हुआ है सभी जानते हैं कि अनवर सुहेल का नाम कहानी जगत में बहुत ही जाना पहचाना नाम है। प्रस्तुत कहानी संग्रह सुहेल भाई ने बहुत पहले ही मेरे पास भेज दिया था लेकिन अपनी परेशानियों के कारण उक्त संग्रह मैं पढ़ नहीं पाया था। इधर चार-पांच दिनों से मैं उक्त संग्रह को पढ़ रहा हूं। संग्रह की सारी कहानियां जिन तथ्यों को उजागर करती है वे तथ्य मानवीय
समीपता के विभिन्न पहलुओं को छूती हुई उन भेदों तथा रहस्यों को उजागर करती हैं जो एक आदमी को दूसरे आदमी से धर्म के नाम पर जाति के नाम पर संप्रदाय के नाम पर तथा अन्य सरोकारों के
आधार पर अलग करते हैं। उक्त संग्रह में कुल दस कहानियां है पहली कहानी है शाकिर उर्फ.... इसी कहानी के नाम पर कहानी संग्रह का नाम रखा गया है। आइए कहानी के नायक शाकिर से मिलते हैं। शाकिर ट्रेन की एक बोगी में सवार है और एक स्टेशन पर एक दूसरा व्यक्ति जो मैं नामक पात्र है वह भी उसमें सवार होता है शाकिर उसे बैठने की जगह देता है जाहिर है कुछ देर के बाद दोनों में बातचीत होती है फिर पता चलता है यह जो ट्रेन में सवार राजू नामक व्यक्ति है जिसने अपना नाम राजू बताया था वह व्यक्ति राजू नहीं शाकिर है, यही कहानी का पूरा कथ्य है और यही कथ्य राजू का अपना असली नाम बताना जो जाति बोधक तथा धर्म बोधक है वही कहानी को विस्तार देता है और सोचने के लिए मजबूर करता है कि यह जो मानव समाज में जाति के संबोधन वाले नाम है ये भी बहुत ही खतरनाक ढंग से समाज को बांटने का काम करते हैं देखिए शाकिर खुद बताता है कि उसने अपना नाम राजू क्यों रखा? "इस राजू नाम के कारण देश प्रदेश में कहीं कोई परेशानी नहीं उठानी पड़ती काम की हुनर ही हमारी पहचान बन गया है । लोग मेरे काम के कारण पहचानते हैं और अल्लाह का करम है कि मेरे जैसे बेल्डर बहुत ही कम है । बहुत रिस्क लेता हूं साहब बचपन से ही तभी तो आज इज्जत दार ढंग से रोजी रोटी चल रही है"
कहानी का कथ्य यह है कि जब तक वह शाकिर था तब तक उसे काम मिलने में बहुत ही दिक्कत होती थी लोग संकोच करते थे या नफरत दोनों संभव है उसे काम नहीं मिलता था अचानक उसने अपना नाम शाकिर से राजू बदल दिया फिर उसे किसी काम की कमी नहीं और समाज के मुख्यधारा में मैं शामिल होकर काम करने लगा।'
सोहेल भाई कहानी के माध्यम से उस भेद उपभेद को खोलते हैं जो आज के समय में बहुत ही खतरनाक ढंग से हिंदू और मुसलमान के नाम से अलग करता है। यह जो धर्म भेद है इतना विस्तारित हो गया है कि लगता ही नहीं कि आदमी और आदमी के बीच में कुदरती बोध विनम्रता कहीं से बची हुई है।
संग्रह की दूसरी एक अनिवार्य कहानी है होलोकास्ट...
होलोकास्ट का नायक सलीम टीवी देखता है टीवी पर समाचार जो आते हैं उसे सुनता है और वह घबरा जाता है कि यह दौर कहीं हिटलर वाला तो नहीं,.
हिटलर के समय में जाति और धर्म की शुचिता के नाम पर बहुत कुछ किया गया था जिसे दुनिया ने, जिसे मानव सभ्यता ने नापसंद किया था और वही दौर लगता है फिर आ गया है। उसकी पत्नी उसे बार-बार रोकती है टीवी वगैरह मत देखा कीजिए काहे के लिए अपना दिमाग खराब करते हैं टीवी देखने से क्या मिलेगा आपको बेमतलब झंझट में फसे रहते हैं जो होगा होगा उसके बारे में पहले से ही चिंतित हो जाना या ठीक नहीं। क्या होने वाला है या हो जाएगा इसके बारे में सोचनाखुद को मानसिक रोगी बनाना यह ठीक नहीं है । लेकिन सलीम परेशान हैं और एक दिन उनकी यह परेशानी इस रूप में उभरती है की किसी कॉलेज में बाहर पढ़ रही बिटिया को वे निर्देश देते हैं कि....
"इसलिए याद किया बिटिया इतनी सुबह को कि देखो तुम जो हिजाब लगाती हो ना अब यह हिजाब पहनना बंद कर दो, दिल्ली में रहती हो समय ठीक नहीं है हिजाब के कारण तुम पहचान में आ सकती हो कि तुम एक मुसलमान लड़की हो, समझी बिना हिजाब के तुम एक साधारण हिंदुस्तानी लड़की दिखोगी"
सलीम की बिटियां आधुनिक है समझदार है वह अपनी मां से बोलती है....
"पापा को बोल दीजिए की टीवी पर न्यूज़ देखना कम करें और फेसबुक तथा व्हाट्सएप कम चलाएं तभी उनका टेंशन कम होगा। ऐसा होता है क्या? मैं इंजीनियरिंग कर रही हूं हिजाब मेरी पहचान है मुझे हिसाब से कंफर्ट लगता है जाने कब से हिजाब पहन रही हूं कॉलेज में भी कोई एतराज नहीं करता बल्कि टीचर्स मुझे रिस्पेक्ट देते हैं । यह देश हम सबका है मम्मी पापा को बोल दीजिए पापा को फोन दीजिए, मुझे उनसे बात करनी है और सलीम की पत्नी ने उन्हें फोन दे दिया।
और सलीम का जवाब देखिए .....
ठीक है बेटा तुम्हारी जैसी मर्जी तुम समझदार हो मौजूदा समय के हालात और आसपास के लोगों को देखकर कांसस रहा करो, अब बस इतनी बात तो मान लो।
संग्रह की एक कहानी है ट्यूबलाइट । यह संग्रह की पूर्ण रूप से अनिवार्य कहानी जान पड़ती है इस कहानी के माध्यम से अनवर सुहैल ने यह बताने की कोशिश की है की जीवन जीना है अगर र तो कुछ ना कुछ खुद में बदलाव करना होगा और वह बदलाव होता है ....वसीम नामक पात्र अपना नाम बदलकर शौर्य प्रताप सिंह रख लेता है फिर तो उसके पास सोशल मीडिया के माध्यम से तमाम तरह की संदेश आने लगते हैं और वह कभी वंदे मातरम बोलता है तो कभी भारत माता की जय बोलता है तो कभी जय श्री राम बोलता है। ऐसा उसने इसलिए किया है क्या है ताकि वह भारत मे रह सके और अपना जीवन निर्वाह कर सकें । स्थितियां काफी बदल चुकी हैं ऐसी हो चुकी हैं की मुसलमान बन के रहना उसे समझ में आता है कि यह भारत में संभव नहीं है । कहानी कई तरह के तथ्यों को प्रस्तुत करते हुए आगे बढ़ती है और संदेश देती है कि यह जो धर्म का छद्म युद्ध लड़ा जा रहा है वह किसी भी धर्म के साथ नहीं है बल्कि वह केवल आदमी और आदमी के बीच गहरी खाई खोदने का काम कर रहे हैं।
संग्रह की और कहानियां भी जैसे "गोकशी " "डाली" "जीव हत्या " नरगिस रुखसाना " "मोहन" "एसी"ये सब ऐसी कहानियां हैं जो भारत के अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज के मानसिक दुख दर्द एवं सोचो का बयान करती है कि बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के वजह से आज का जो मुस्लिम समाज है वह न केवल भयभीत है बल्कि सोच में भी है कि उसे जिंदा रहने के लिए क्या करना चाहिए । वह यह भी सोचने लगा है क्या धर्म जीवन जीने का तरीका बताता है अगर ऐसा है फिर तो जो कई तरह के धर्म है इनमें आपस में भेद क्यों है भेद क्यों है ? सोहेल भाई बहुत बारीकी से मुस्लिम पहचान के संकट को उजागर करते हैं तथा यह बताने का प्रयास करते हैं कि यहां का मुस्लिम समाज भारतीय समाज में अपनी भूमिका के लिए कैसा प्रयास करें तथा उसके प्रयास को मान्यता भी मिले । उसकी पहचान ही विलुप्त होती जा रही है उसे कभी आतंकवादी बताया जाता है कभी देशद्रोही बताया जाता है तो कभी कुछ बताया जाता है । नफरत की दीवार लगातार खींची जा रही है जो किसी भी धर्म के अनुकूल नहीं है । धर्म तो सहकार सहिष्णुता ,विनम्रता आपसी मेलजोल का नाम है ।धर्म किसी में भेद नहीं करता । धर्म में जाति भेद ,लिंग भेद, अर्थ भेद है ही नहीं , धर्म तो जोड़ने का काम करता है तोड़ने का नहीं । धर्म मे तो कुदरती बोध होता है है समत्वम बोध वाला, वहां भेद,उपभेद है ही नहीं।
साकिर उर्फ कहानी संग्रह एक ऐसा कहानी संग्रह है जिसे हर आदमी को पढ़ना चाहिए तथा समझना चाहिए यह जो आदमी और आदमी के बीच भेद पैदा किया जा रहा है जाति और धर्म के नाम पर वह पूर्ण रूप से गलत तथा कुदरत विरोधी है । तथा समझना यह भी चाहिए कि की दुनिया में एक ही धर्म क्यों नहीं है? कहीं इस्लाम है कही हिंदू धर्म है ,कहीं ईसाई धर्म है कहीं और धर्म है । कई तरह के धर्म आखिरकार दुनिया में क्यों आ गए ,? और उनके प्रणेताओं में किसी भी तरह का द्वन्द नहीं ,मोहम्मद साहब से राम का झगड़ा नहीं ,राम का ईशा से झगड़ा नहीं फिर आज का जो समाज है जो हमारा मानव समाज जाहिर है राम एक तरह के अलग व्यक्तित्व है तो कृष्ण जी भी एक अलग तरह के व्यक्तित्व है ।सभी एक अलग तरह के व्यक्तित्व हैं ये सारे धार्मिक व्यक्तित्व कहीं भी आपस में भेद नहीं रखते और नहीं एक दूसरे की नकल करते हैं । दिक्कत यह है कि हम नकल करने के चक्कर में झगड़ रहे हैं मारपीट कर रहे हैं नफरत फैला रहे हैं जिसे कभी भी सक्रिय मानव सभ्यता स्वीकार नहीं सकती और वह भी जब हमारा समाज लोकतांत्रिक समाज हो...तो इसे क्या कहा जाए केवल दुख ही प्रकट किया जा सकता है।