समसामयिक सृजनात्मकता का मंच
बच निकलने की राह
आसान भी, दुरूह भी
समय प्रतिकूल है तो क्या
हम खत्म होने से पहले
बचा ले जाएंगे बहुत कुछ
इतना कि पड़ जाए
बिना ऊंच-नीच, भेदभाव वाली
एक नई सभ्यता की नींव
कि यह इमारत हो चुकी खंडहर
इसे टूटना ज़रूरी है।।।।