शनिवार, 11 जून 2016

संकल्प

अभी तो मुझे 
दौड कर पार करनी है दूरियां 
अभी तो मुझे 
कूद कर फलांगना है पहाड़ 
अभी तो मुझे 
लपक कर तोडना है आम
अभी तो मुझे
जाग-जाग कर लिखना है महाकाव्य
अभी तो मुझे
दुखती लाल हुई आँख से
पढनी है सैकड़ों किताबें
अभी तो मुझे
सूखे पत्तों की तरह लरज़ते दिल से
करना है खूब-खूब प्या....र
तुम निश्चिन्त रहो मेरे दोस्त
मैं कभी संन्यास नही लूँगा...
और यूं ही जिंदगी के मोर्चे में
लड़ता रहूँगा
नई पीढ़ी के साथ
कंधे से कंधा मिलाकर....

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