रविवार, 26 फ़रवरी 2017

वो हमें डराते हैं















इन दिनों
या कहूँ कि बीते
सैकड़ों दिनों से ना-उम्मीदी ने जैसे
डेरा डाल रक्खा है
मेरे वजूद पर 
तुमसे मिलती थी राहत पहले
देखता हूँ तुम भी इन दिनों
गुमसुम से रहते हो।

कहाँ जाएँ
किससे मिलें
कोई चारागर नहीं
मर्ज़ है कि बढ़ता जा रहा

जो लोग समय के साथ हैं
वो सभी निर्लज्जता से स्वस्थ हैं
इस समय क्या हया ही
हमारे दुक्खों का कारण है?
हम जो लिहाज करते हैं
हम जो तकल्लुफ के मारे हैं
हम जो संस्कारी हैं
हम जो खामोश रहते हैं
हम बवाल से डरते जो हैं
क्या इसी लिए वो हमें डराते हैं?

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