( अनुभूति गुप्ता पेंटिंग को देखकर )
भीतर तक बहुत गहरे
अपमान, प्रताड़ना के ज़ख्म
रह रह कर पीड़ा उभारते
दिल में बहुत कुछ कर जाने की
तुम्हारा निज़ाम मुस्तैद है
और मैं अपनी ज़िद से
काले बादलों को हटा कर
अपने हिस्से के सूरज को पाने को
हूँ बेचैन कि उसकी तिलस्मी धूप में
सेंक कर बदन की सीलन भगा तो लूं
और तुम्हारे स्वागत में आंगन बुहार लूं।
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