हंस मई २०१० कहानी : अनवर सुहैल |
हंस मई २०१० में मेरी कहानी "नीला हाथी" प्रकाशित हुई है...
अंधविश्वाश में खिलाफ जिहाद करती कहानी से कुछ उद्धहरण प्रस्तुत हैं :
"ये मज़ार न होते तो क़व्वालिये बेकार हो गए होते, तो श्रद्धालु इतनी गैरजरूरी यात्राएं न करते और बस - रेल में भीड़ न होती. ये मज़ार न होते तो लड़का पैदा करने की इच्छाएं दम तोड़ जाती. मज़ार न होतो तो जादू-टोने जैसे छुपे दुश्मनों से आदमी कैसे लड़ता? ये मजार न होते तो खिदमतगारों, भिखारिओं, चोरों और बटमारों को अड्डा न मिलता?"
"मैंने कई मजारों की सैर की . सभी जगह मैंने पाया की वहाँ इस्लाम की रौशनी नदारत थी. था सिर्फ और सिर्फ अकीदतमंदों की भावनाओं से खेलकर पैसा कमाना . मैं तो सिर्फ मूर्तियाँ बनाया करता था, लेकिन इन जगहों पर मैंने देखा की एक तरह से मूर्तिपूजा ही तो हो रही है. तभी मेरे दिमाग में ये विचार आया की मैं भी पाखण्ड करके देखता हूँ."
आप भी 'नीला हाथी " कहानी पढ़ें और अपने विचारों से अवगत कराएं ....
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