k ravindra |
तुम मेरी बेटी नही
बल्कि हो बेटा...
इसीलिये मैंने तुम्हे
दूर रक्खा श्रृंगार मेज से
दूर रक्खा रसोई से
दूर रक्खा झाडू-पोंछे से
दूर रक्खा डर-भय के भाव से
दूर रक्खा बिना अपराध
माफ़ी मांगने की आदतों से
दूर रक्खा दुसरे की आँख से देखने की लत से....
और बार-बार
किसी के भी हुकुम सुन कर
दौड़ पडने की आदत से भी
तुम्हे दूर रक्खा...
बेशक तुम बेधड़क जी लोगी
मर्दों के ज़ालिम संसार में
मुझे यकीन है...