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Thursday, August 1, 2013

बेदर्द मौसम में

के रवीन्द्र की पेंटिंग

तुम्हें रोने की आज़ादी
तुम्हें मिल जाएंगे कंधे
तुम्हें घुट-घुट के जीने का
मुद्दत से तजुर्बा है
तुम्हें खामोश रहकर
बात करना अच्छा आता है
गमों का बोझ आ जाए तो
तुम गाते-गुनगुनाते हो
तुम्हारे गीत सुनकर वो
हिलाते सिर देते दाद...

इन्ही आदत के चलते ये
ज़माना बस तुम्हारा है
कि तुम जी लोगे इसी तरह
ऎसे बेदर्द मौसम में
ऎसे बेशर्म लोगों में
इसी तरह की मिट्टी से
बने लोगों की खासखास
ज़रूरत हुक्मरां को है
ज़रूरत अफसरों को है

हमारे जैसे ज़िद्दी-जट्ट
हुरमुठ और चरेरों को
भला कब तक सहे कोई
भला क्योंकर मुआफी दे....

1 comment:

  1. इन्ही आदत के चलते ये
    ज़माना बस तुम्हारा है
    कि तुम जी लोगे इसी तरह
    ऎसे बेदर्द मौसम में
    ऎसे बेशर्म लोगों में
    इसी तरह की मिट्टी से
    बने लोगों की खासखास
    ज़रूरत हुक्मरां को है
    ज़रूरत अफसरों को है

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