के रवीन्द्र की पेंटिंग |
तुम्हें रोने की आज़ादी
तुम्हें मिल जाएंगे कंधे
तुम्हें घुट-घुट के जीने का
मुद्दत से तजुर्बा है
तुम्हें खामोश रहकर
बात करना अच्छा आता है
गमों का बोझ आ जाए तो
तुम गाते-गुनगुनाते हो
तुम्हारे गीत सुनकर वो
हिलाते सिर देते दाद...
इन्ही आदत के चलते ये
ज़माना बस तुम्हारा है
कि तुम जी लोगे इसी तरह
ऎसे बेदर्द मौसम में
ऎसे बेशर्म लोगों में
इसी तरह की मिट्टी से
बने लोगों की खासखास
ज़रूरत हुक्मरां को है
ज़रूरत अफसरों को है
हमारे जैसे ज़िद्दी-जट्ट
हुरमुठ और चरेरों को
भला कब तक सहे कोई
भला क्योंकर मुआफी दे....
इन्ही आदत के चलते ये
ReplyDeleteज़माना बस तुम्हारा है
कि तुम जी लोगे इसी तरह
ऎसे बेदर्द मौसम में
ऎसे बेशर्म लोगों में
इसी तरह की मिट्टी से
बने लोगों की खासखास
ज़रूरत हुक्मरां को है
ज़रूरत अफसरों को है