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Friday, August 30, 2013

परिवर्तन

k ravindra
तुम मेरी बेटी नही 
बल्कि हो बेटा...
इसीलिये मैंने तुम्हे 
दूर रक्खा श्रृंगार मेज से 
दूर रक्खा रसोई से 
दूर रक्खा झाडू-पोंछे से 
दूर रक्खा डर-भय के भाव से 
दूर रक्खा बिना अपराध 
माफ़ी मांगने की आदतों से 
दूर रक्खा दुसरे की आँख से देखने की लत से....
और बार-बार
किसी के भी हुकुम सुन कर 
दौड़ पडने की आदत से भी 
तुम्हे दूर रक्खा...

बेशक तुम बेधड़क जी लोगी 
मर्दों के ज़ालिम संसार में
मुझे यकीन है...

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