बुधवार, 18 दिसंबर 2013

हम नही सुधरेंगे...


ऐतराज़ क्यों है आपको 
जो हम खुद को भेड़-बकरी मानते हैं 

तकलीफ क्यों है आपको 
जो हम बने हुए हैं हुकुम के गुलाम 

झल्लाते क्यों है आप 
जो हम बा-अदब खड़े मिलते हैं सिर झुकाए 

नाराज़ क्यों होते हैं आप 
जो हम अपने निजात के लिए 
गढ़ते रहते हैं नित नए आका 


                   नित नए नायक 
                    नित नए खुदा...



ये हमारी फितरत है 
ये हमारी आदत है 
बिना कोई आदेश सुने 
हम खाते नही, पीते नही 
सोते नही, जागते नही 
हँसते नही...रोते नही...
यहाँ तक कि सोचते नही...

सदियों से गुलाम है अपना तन-मन 
काहे हमे सुधारना चाहते हैं श्रीमन....

शनिवार, 14 दिसंबर 2013

सिर्फ कागज़ का नक्शा नही है देश....

उन्हें विरासत में मिली है सीख
कि देश एक नक्शा है कागज़ का
चार फोल्ड कर लो
तो रुमाल बन कर जेब में आ जाये
देश का सारा खजाना
उनके बटुवे में है
तभी तो कितनी फूली दीखती उनकी जेब
इसीलिए वे करते घोषणाएं
कि हमने तुम पर
उन लोगों के ज़रिये
खूब लुटाये पैसे
मुठ्ठियाँ भर-भर के

विडम्बना ये कि अविवेकी हम
पहचान नही पाए असली दाता को
उन्हें नाज़ है कि
त्याग और बलिदान का
सर्वाधिकार उनके पास सुरक्षित है

इसीलिए वे चाहते हैं
कि उनकी महत्वाकांक्षाओं के लिए
हम भी हँसते-हँसते बलिदान हो जाएँ
और उनके ऐशो-आराम के लिए
त्याग दें स्वप्न देखना...
त्याग दें प्रश्न करना...
त्याग दें उम्मीद रखना.....
क्योंकि उन्हें विरासत में मिली सीख
कि टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं से
कागज़ पर अंकित
देश एक नक्शा मात्र है....

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