ऐतराज़ क्यों है आपको
जो हम खुद को भेड़-बकरी मानते हैं
तकलीफ क्यों है आपको
जो हम बने हुए हैं हुकुम के गुलाम
झल्लाते क्यों है आप
जो हम बा-अदब खड़े मिलते हैं सिर झुकाए
नाराज़ क्यों होते हैं आप
जो हम अपने निजात के लिए
गढ़ते रहते हैं नित नए आका
नित नए नायक
नित नए खुदा...
ये हमारी फितरत है
ये हमारी आदत है
बिना कोई आदेश सुने
हम खाते नही, पीते नही
सोते नही, जागते नही
हँसते नही...रोते नही...
यहाँ तक कि सोचते नही...
सदियों से गुलाम है अपना तन-मन
काहे हमे सुधारना चाहते हैं श्रीमन....
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