यह एक ऐसी पीड़ा है जिससे हिन्दुस्तान का आम मुसलमान आये दिन दो-चार होता है. अल्पसंख्यक होने की पीड़ा...
वो समझ नही पाता और भेष बदल-बदल कर कई संगठन उसकी अस्मिता, उसकी सोच, उसकी उपस्थिति को प्रश्नांकित करते रहते हैं. वो समझ नही पाता और जिस तरह स्त्री को सतीत्व का प्रमाण जुटाना पड़ता है उसी तरह अल्पसंख्यक को देश-प्रेम की शहादतें आये दिन देनी पड़ती हैं.
जाहिद खान की किताब 'संघ का हिन्दुस्तान' बड़ी बेबाकी से ऐसे संगठनों को बेनकाब करती है. बेशक ऐसे में पहचान लिए जाने के खतरे हैं...लेकिन 'अभिव्यक्ति के खतरे उठाने ही होंगे...!' यही सोच कर जाहिद खान ने संघ के पुराने क्रियाकलापों और विचारधारा पर बात न करते हुए ऐसे राज्य जहाँ संघ की प्रयोगशाला से निकली पार्टी भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं उनके संघ-प्रेरित एजेण्डे के साकार होने का कच्चा चिट्ठा खोलती है.
बड़े संयत और सहज शब्दों में जाहिद खान ने हिटलर के नए अवतारों की पोल खोली है. आजकल ये विकास की बात करते हुए युवा मतदाताओं में पैठ बना रहे हैं. जबकि इनके आर्थिक कार्यक्रम डॉ. मनमोहन सिंह के अर्थ-तंत्र पर आधारित हैं. फिर काहे का नयापन...
भाजपा शाषित राज्यों में सरस्वती शिशु मंदिर की ऐसे ज़बरदस्त नेट्वर्किंग इन डेढ़ दशक में हुई है कि उस विचार-धारा से प्रेरित लाखों युवा तैयार हैं...एक आक्रामक हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा के साथ.
बकौल अजेय कुमार---"नरेंद्र मोदी का uday आज की भाजपा की पहचान को प्रतिबिम्बित करता है. या पहचान है, शुद्ध साम्प्रदायिक एजेंडा की, जिसका योग कारपोरेट और बड़ी पूँजी के स्वार्थों की पैरकारी के साथ कायम किया गया है. इस तरह मोदी हिंदुत्व और बड़ी पूँजी के स्वार्थों के योग का प्रतिनिधित्व करता है."
किताब में जाहिद खान ने लगातार इन मुद्दों पर विचार व्यक्त किये हैं. यह किताब संघ-परिवार और हिंदुत्व सम्बन्धी उनके उन तमाम महत्वपूर्ण लेखों का संकलन है, जिसकी आज बेहद ज़रूरत है.
जाहिद खान ने इस किताब में संघ परिवार की सियासत, संघी मानसिकता के पहलु, हिंदुत्व का आलाप विषय पर आँख खोलने वाले लेख लिखे हैं.
मालेगाव, समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद ब्लास्ट की इन्क्वारी से उभरे संघ के आतंकी चेहरे को बेनकाब किया है. जाहिद खान सिमी की भर्त्सना करते हैं तो चाहते हैं कि शष्त्र-संचालन करते संघ के वास्तविक रूप से युवा रु-ब-रु हों...
किताब में है हिंदुत्व की शाखाओं, मोदी के गुजरात कर्नाटक के काले दाग, 'भयमुक्त मध्यप्रदेश की हकीकतों पर कई आलेख..
इस किताब से पूर्व जाहिद खान की एक और किताब आई थी 'आज़ाद हिन्दुस्तान में मुसलमान'
अपने लेखन और सोच में प्रगतिशील जाहिद खान पाठकों के समक्ष प्रामाणिक जानकारियों के साथ तथ्यात्मक विचार रखते हैं जिससे पाठक का नीर-क्षीर विवेक जागृत हो.
मौजूदा दौर की उथल-पुथल और मीडिया के पूर्वाग्रहों से पाठकों को आगाह और जागरूक करने वाली एक ज़रूरी किताब है--'संघ का हिन्दुस्तान'.
हम जाहिद खान के आभारी हैं जिन्होंने इतनी मेहनत और लगन से इस पुस्तक को तैयार किया है साथ ही उद्भावना प्रकाशन के भी सुकरगुज़ार हैं कि पेपर-बेक में किताब छाप कर विद्यार्थियों और जागरूक पाठकों को अद्भुत सौगात दी है.
संघ का हिन्दुस्तान : जाहिद खान
उद्भावना, एच-५५, सेक्टर २३ राजनगर
गाज़ियाबाद उ.प्र.
पृष्ठ : १२८ मूल्य : पचास रुपये
वो समझ नही पाता और भेष बदल-बदल कर कई संगठन उसकी अस्मिता, उसकी सोच, उसकी उपस्थिति को प्रश्नांकित करते रहते हैं. वो समझ नही पाता और जिस तरह स्त्री को सतीत्व का प्रमाण जुटाना पड़ता है उसी तरह अल्पसंख्यक को देश-प्रेम की शहादतें आये दिन देनी पड़ती हैं.
जाहिद खान की किताब 'संघ का हिन्दुस्तान' बड़ी बेबाकी से ऐसे संगठनों को बेनकाब करती है. बेशक ऐसे में पहचान लिए जाने के खतरे हैं...लेकिन 'अभिव्यक्ति के खतरे उठाने ही होंगे...!' यही सोच कर जाहिद खान ने संघ के पुराने क्रियाकलापों और विचारधारा पर बात न करते हुए ऐसे राज्य जहाँ संघ की प्रयोगशाला से निकली पार्टी भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं उनके संघ-प्रेरित एजेण्डे के साकार होने का कच्चा चिट्ठा खोलती है.
बड़े संयत और सहज शब्दों में जाहिद खान ने हिटलर के नए अवतारों की पोल खोली है. आजकल ये विकास की बात करते हुए युवा मतदाताओं में पैठ बना रहे हैं. जबकि इनके आर्थिक कार्यक्रम डॉ. मनमोहन सिंह के अर्थ-तंत्र पर आधारित हैं. फिर काहे का नयापन...
भाजपा शाषित राज्यों में सरस्वती शिशु मंदिर की ऐसे ज़बरदस्त नेट्वर्किंग इन डेढ़ दशक में हुई है कि उस विचार-धारा से प्रेरित लाखों युवा तैयार हैं...एक आक्रामक हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा के साथ.
बकौल अजेय कुमार---"नरेंद्र मोदी का uday आज की भाजपा की पहचान को प्रतिबिम्बित करता है. या पहचान है, शुद्ध साम्प्रदायिक एजेंडा की, जिसका योग कारपोरेट और बड़ी पूँजी के स्वार्थों की पैरकारी के साथ कायम किया गया है. इस तरह मोदी हिंदुत्व और बड़ी पूँजी के स्वार्थों के योग का प्रतिनिधित्व करता है."
किताब में जाहिद खान ने लगातार इन मुद्दों पर विचार व्यक्त किये हैं. यह किताब संघ-परिवार और हिंदुत्व सम्बन्धी उनके उन तमाम महत्वपूर्ण लेखों का संकलन है, जिसकी आज बेहद ज़रूरत है.
जाहिद खान ने इस किताब में संघ परिवार की सियासत, संघी मानसिकता के पहलु, हिंदुत्व का आलाप विषय पर आँख खोलने वाले लेख लिखे हैं.
मालेगाव, समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद ब्लास्ट की इन्क्वारी से उभरे संघ के आतंकी चेहरे को बेनकाब किया है. जाहिद खान सिमी की भर्त्सना करते हैं तो चाहते हैं कि शष्त्र-संचालन करते संघ के वास्तविक रूप से युवा रु-ब-रु हों...
किताब में है हिंदुत्व की शाखाओं, मोदी के गुजरात कर्नाटक के काले दाग, 'भयमुक्त मध्यप्रदेश की हकीकतों पर कई आलेख..
इस किताब से पूर्व जाहिद खान की एक और किताब आई थी 'आज़ाद हिन्दुस्तान में मुसलमान'
अपने लेखन और सोच में प्रगतिशील जाहिद खान पाठकों के समक्ष प्रामाणिक जानकारियों के साथ तथ्यात्मक विचार रखते हैं जिससे पाठक का नीर-क्षीर विवेक जागृत हो.
मौजूदा दौर की उथल-पुथल और मीडिया के पूर्वाग्रहों से पाठकों को आगाह और जागरूक करने वाली एक ज़रूरी किताब है--'संघ का हिन्दुस्तान'.
हम जाहिद खान के आभारी हैं जिन्होंने इतनी मेहनत और लगन से इस पुस्तक को तैयार किया है साथ ही उद्भावना प्रकाशन के भी सुकरगुज़ार हैं कि पेपर-बेक में किताब छाप कर विद्यार्थियों और जागरूक पाठकों को अद्भुत सौगात दी है.
संघ का हिन्दुस्तान : जाहिद खान
उद्भावना, एच-५५, सेक्टर २३ राजनगर
गाज़ियाबाद उ.प्र.
पृष्ठ : १२८ मूल्य : पचास रुपये
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