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Sunday, April 29, 2018

जमानत पर रिहाई



आइये दें बधाई खूब उसे 
कैसे भी छूट गया भाई वो 
बच के इक बार तो निकल आया 
या कि इस बार छूटना ही था उसे 
या कि ये सोचकर छोड़े होंगे 
जब भी चाहेंगे धर दबोचेंगे 
और ज्यादा जो फड़फड़ाया तो 
अपनी मुठभेड़ सेना जिन्दा है 
कितनी आसान बात होती है 
इक जरा खुट और किस्सा तमाम 

यही तो सोच रहा हूँ कबसे 
भेड़िये कब शिकार छोड़े हैं 
कुछ तो होगी ज़रूर बात डियर 
वरना ऐसा कभी हुआ है कभी 
हाथ आया शिकार छूटा हो !
वह भी ऐसा शिकार कि जिसकी 
ज़िन्दगी की सलामती के लिए 
दुवाएं मांगने वाले भी कैसे काँपे हैं 
कहीं जान न जाएँ दलाल या गुंडे 
और किसी ऐसे ही नए मुक़दमे में 
कोई धारा लगाके बेड़ न दे 

आइये दें बधाई खूब उसे 
और चुपके से खिसक लें भाई 
अपनी भी ज़िन्दगी अभागी है 
हम तो हर दिन ही खोदते हैं कुआँ 
और हर रात प्यासे सोते हैं 
जितना पाते नहीं हैं उससे भी 
खूब ज्यादा सुकून खोते हैं 
हर कदम खूब सहे हैं ज़िल्लत 
ज़िन्दगी बोझ-बोझ ढोते हैं
भेड़िये घूम रहे हैं देखो 
उनसे बचके निकलने की कला 
सीखना आज की ज़रूरत है....

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