रविवार, 1 अप्रैल 2018

खेल हार-जीत का



हम जिसे खेल समझते हैं दोस्त
यह जीत-हार का मामूली खेल नहीं है
खेल होता तो खेल-भावना भी होती
खिलाड़ियों की जोर-आजमाइशें होतीं 
मैदान में दोनों पक्षों के दर्शक एक साथ जुटते
दर्शकों की प्रतिबद्धता स्पष्ट होती
टीम के खिलाड़ी पाला-बदल नहीं करते
रेफरी का निर्णय अंतिम होता है
रेफरी कोई न्यायाधीश तो नहीं होता
और न होता है ईश्वर लेकिन
खेल के मैदान का अपना उसूल है
यह खेल अब इस तरह खेला जा रहा है
कि टीम सिर्फ एक ही खेले
तमाम दर्शक सिर्फ एक ही टीम के पीछे रहें
पूरा मैदान एक ही तरह की ड्रेस के खिलाडियों
और एक तरह के झंडा थामे दर्शकों से अटा-पटा हो
ढिंढोरची मीडिया अपनी पूरी ताकत से
इस एकतरफा खेल को महायुद्ध के रूप में
चौबीस घंटे करता रहे प्रचारित
और दुनिया इस खेल को अमान्य न करार कर दे
इसलिए बेवजह सीटियाँ बजाता
एक सजावटी रेफरी भी नियुक्त रहे ताकि सनद रहे
अबके जो खेल हो रहा है दोस्त
इसके नतीजे सबको मालूम रहते हैं....

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