एक
सुर में बजता रहता एक गीत
हम हैं अहिंसक, दयालू
सहिष्णु और कोमल हृदयी
सह-अस्तित्व के पुरोधा
वसुधैव-कुटुम्बकम के पैरोकार
मैंने कितनी बार कहा भाई
तुम्हारे शब्दों के अर्थ खो चुके हैं
तुम्हारे गीतों से भाव गुम हो गये
एक बार हमें इन गीतों को
इस तरह से भी गुनगुनाना चाहिए
कि हम हिंसक हैं, क्रूर हैं,
असहिष्णु हैं और बेहद कठोर हृदयी भी
हमनें ठुकराया है सह-अस्तित्व के सरोकार
मुझे पूरा यकीन है भाई
इस तरह गाकर यह गीत
हम जान जायेंगे कि हमें
एक बेहतर इंसान बनने के लिए
अभी करनी हैं बहुत सी मंजिलें तय
कि बहुत कठिन है डगर पनघट की...
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