सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

दो कवितायेँ


एक


हम आपके बताए
इतिहास को नहीं मानते
हम आपकी किताबों का
करते हैं बहिष्कार!
जान लो कि अब हमने 
लिख ली इतिहास की नई किताबें
पूरा सच तुम भी कहां जानते हो
पूरा सच हम भी नहीं जानते
फिर तुम्हारी मान्यताएं क्यों हो मान्य
हम भी दावा करते हैं कि सच के
ज्यादा करीब हैं हमारी मान्यताएं
दो अधूरे सच मिलकर भी
नहीं बन सकते पूरा सच
कि जीवन कोई गणितीय फार्मूला नहीं।।।


दो 

अपनी विद्वता, पद-प्रतिष्ठा को
आड़े नहीं आने देता कि तुम कहीं
अपनी मासूम, बेबाक छवि को छुपाने लगो
मैं नहीं चाहता कि मेरे आभा-मंडल में
गुम जाए तुम्हारा फितरतन चुलबुलापन
तुम्हें जानकार हौरानी होगी
कि हम लोग बड़े आभाषी लोग हैं
और हम खुद नहीं जानते अपनी वास्तविक छवि
परत-दर-परत उधेड़ते जाओ
फिर भी भेद न पाओगे असल रूप
तुम जिस तरह जी रहे हो दोस्त
बेशक, उस तरह से जीना एक साधना है
बेदर्द मौसमों की मार से बेपरवाह, बिंदास
भोले-भाले सवाल और वैसे ही जवाब
बस इतने से ही तुम सुलझा लेते हो
अखंड विश्व की गूढ़-गुत्थियाँ
बिना विद्वता का दावा किये
यही तुम्हारी ऊर्जा है
यही तुम्हारी ताकत
और यही सरलता मुझे तुम्हारे करीब लाती है......

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