हमारे मासूम ख्वाबों में
इन किताब की गुमटियों की
कितनी बड़ी जगह हुआ करती थी
जेबें खाली हों तब भी
किताबों के मुखपृष्ठ को
और अंदर छुपी कहानियों को
कितनी ललचाई निगाहों से सोखते थे हम
इन किताब की गुमटियों की
कितनी बड़ी जगह हुआ करती थी
जेबें खाली हों तब भी
किताबों के मुखपृष्ठ को
और अंदर छुपी कहानियों को
कितनी ललचाई निगाहों से सोखते थे हम
दुकानदार को मानते थे
कितना भाग्यशाली हम
जो जब चाहे जिस किताब को
घूँट-घूँट पी सकता था
और एक हम जो एक अरसे बाद ही
देख पाते थे झलक किताब के दुकान की
कितना भाग्यशाली हम
जो जब चाहे जिस किताब को
घूँट-घूँट पी सकता था
और एक हम जो एक अरसे बाद ही
देख पाते थे झलक किताब के दुकान की
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