गुरुवार, 7 नवंबर 2019

भूखे आदमी को कविता नहीं रोटी चाहिए....


भूखा आदमी क्या कविता लिखता है
भूखा आदमी खामोश मुझे घूरता रहा
मैने उसकी आंखों में देखी महाकाव्य की सम्भावनाएं
मैने उसकी मजबूरियों में देखीं
सम्पादकों से स्वीकृत होती कविताएं
आलोचकों की प्रशंसात्मक टिप्पणियां

कवि का टारगेट पाठक भूखा आदमी होता है
भूखा आदमी कविता नहीं पढ़ता है
भूखा आदमी पर बनी पेंटिंग कीमती होती है
उसकी बेचारगी से सिनेमा ग्लोबल हो जाता है

भूखे लोग संगठित नहीं हो पाते
खाये-पिये-अघाये लोगों से
हज़ार गुना ज्यादा होने पर भी
भूखे लोग अल्पमत में रहते हैं
भूखे लोग एक रोटी पाने की लिए
लड़ सकते हैं, मर सकते हैं
मार सकते हैं किसी को भी लेकिन
इंकलाबी नहीं हो सकते क्योंकि
भूख इंसान को हैवान बना सकती है
इन्क़िलाबी कतई नहीं।

भूखा आदमी एक अदद रोटी के लिए
हर पन्थ, हर वाद को अपना लेता है
इसलिए जुलूस में झंडा थामे, नारा लगाते
उस आदमी को गौर से देखो जिसके
स्वप्न का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ
एक अदद रोटी का जुगाड़ है
आज और अभी के लिए तत्काल
उसे नहीं चाहिए योजनाओं वाले पांच साल।।

(पेंटिंग : अवधेश बाजपेई)

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