यह किसी बालर की गेंद नहीं है
जो लक्ष्य को भेदने फेंकी गई हो
मेरे दिल और दिमाग में अचानक
अनगढ़, बेमेल विचारों की आंधी है
अब अक्सर इन अंधड़ों से होता हूँ परेशान
तो तेज़ी से बदलती भावनाओं को
बेबस हुए जाते शब्द आकार नहीं दे पाते हैं
मैंने जब यह बात झिझकते हुए उससे कही
तो वह भी बोल उठा, हाँ भाई, ऐसा ही हो रहा है
पुराने टॉकीज़ के पीछे जोड़ा तालाब के बीच
पगडंडी पर हम चल रहे थे, मस्जिद से मग़रीब की अज़ान गूंजी
शाम के रहस्य का जादू बिखर रहा था कि अचानक
हम सुरमई अंधेरों में किन्हीं सूखे पेड़ की तरह
खड़े हो गए चित्रवत कि इस पगडंडी पर अब सिर्फ
हम ही थे और कवि मित्र की जेब में शब्द गुम चुके थे।