मैं तुम्हें कैसे बताऊं, मेरी बेटी?
हमारे ज़माने में माँ कैसी होती थी?
तब पापा एक डिक्टेटर की पोजीशन में बैठते थे।
तब बच्चे पापा के नाम से कांपते थे।
और माँ हमें बार-बार पापा की मार और डांट से बचाती थी।
वो हमारी छोटी-बड़ी गलतियाँ पापा से छिपाती थी।
माँ हमारे बचपन की सबसे सेफ दोस्त हुआ करती थी।
वो हमारी रूलर हुआ करती थी।
वो इधर-उधर से पैसे बचाती थी।
और चुपचाप सिनेमा, सर्कस के लिए पैसे दे देती थी।
हम पापा से कोई डायरेक्ट रिक्वेस्ट नहीं कर सकते थे।
माँ हमारी मीडिएटर हुआ करती थी।
जो हमारी ज़रूरतों के लिए अर्ज़ी देती थी।
अपनी प्लेट में बची हुई सब्ज़ी और रोटी के साथ।
जब वो खाने बैठती थी, तो हम, भरे हुए बच्चे,
एक निवाले के लिए बेचैन रहते थे। उस एक बाइट ने हमें सिखाया
हर सब्ज़ी के स्वाद का मज़ा...
आप लोगों की तरह, हम कभी नहीं कह सकते
कि हमें भिंडी पसंद नहीं है। जैसे
कि बैंगन एक खाने की चीज़ है
हमारे ज़माने की माँएँ
सबके सोने के बाद सोती थीं
सबके उठने से पहले उठती थीं
और सबकी पसंद-नापसंद का ध्यान रखती थीं
कि तब परिवार बहुत बड़े होते थे
कि तब माँएँ मशीन की तरह काम में बिज़ी रहती थीं
कि माँएँ सिर्फ़ बच्चों की माँएँ होती थीं..........
कैसे बताऊँ
हमारे ज़माने में माँएँ कैसी होती थीं ......
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