चुनाव की फसल
जख्म टीसता है,
दर्द तो होगा ही
लाजिम है ज़ख़्मी का रोना-तड़पना,
मरहम की दरख्वास्त करना
इधर-उधर ताकना-गिडगिडाना
लेकिन वे जानते हैं
समय सबसे बड़ा डाक्टर होता है
बड़े-बड़े ज़ख्म भर देता है
उन्हें तो बस ये देखना था
कि इस ज़ख्म से
किस-किसको लगी ठेस...
किस-किसने पहुंचाया सांत्वना-सन्देश
कौन-कौन गया मिलने
किस मीडिया संस्थान ने कैसी लगाई बाईट
किस अखबार ने कैसे रखी बात
फिर वे जुट गये विवेचना में
प्रयोग के प्रायोजन और प्रभाव पर
हुई बैठकें और निकाला गया निष्कर्ष
कि ऐसे ही प्रयोग के दुहराव से
आजीविका से जूझते समाज को
किया जा सकता है दिग्भ्रमित
और चुनाव की अच्छी फसल के लिए
ऐसे प्रयोग ही तो ज़रूरी हैं.....
भूलना ही है इलाज
मत करो चीख-पुकार
भूल जाओ इसे कि भूलना ही इलाज है इसका
सदियों सी किये जा रहे अपमान को
यूँ ही भूलते ही तो आ रहे हो
फिर अब क्यों न्याय की लगा रहे गुहार
जबकि सदियों से किसी ने सुनी नही पुकार
मत करो चीख-पुकार
ज़ख्म हैं भर जायेंगे एक दिन
आंसूओं के सैलाब सूख जायेंगे एक दिन
कितनी चरेर देह है तुम्हारी
इतना मारने के बाद भी तो मरते नहीं तुम
मत करो चीख-पुकार
जान की होती है एक तयशुदा कीमत
लेकिन अपमान की कीमत कहाँ दे पाता है कोई
इस अपमान को भी भूलना होगा
जब तक कोई राह नहीं दीखती
भूलना ही इलाज है इसका....
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