बाज़ार रहें आबाद
बढ़ता रहे निवेश
इसलिए वे नहीं हो सकते दुश्मन
भले से वे रहे हों
आतताई, साम्राज्यवादी, विशुद्ध
विदेशी...
अपने मुल्क की रौनक बढाने के लिए
भले से किया हो शोषण, उत्पीड़न
वे तब भी नहीं थे वैसे दुश्मन
जैसे कि ये सारे हैं
कोढ़ में खाज से
दल रहे छाती पे मूंग
और जाने कब तक सहना है इन्हें
जाते भी नहीं छोड़कर
जबकि आधे से ज्यादा जा चुके
अपने बनाये स्वप्न-देश में
और अब तक बने हुए हैं मुहाज़िर!
ये, जो बाहर से आये, रचे-बसे
ऐसे घुले-मिले कि एक रंग हुए
एक संग भी हुए
संगीत के सुरों में भी ढल से गये
ऐसे
कि हम बेसुरे से हो गये...
यहीं जिए फिर इसी देश की माटी में
दफ़न हुए
यदि देश भर में फैली
इनकी कब्रगाहों के क्षेत्रफल को
जोड़ा जाए तो बन सकता है एक अलग देश
आखिर किसी देश की मान्यता के लिए
कितनी भूमि की पडती है ज़रूरत
इन कब्रगाहों को एक जगह कर दिया
जाए
तो बन सकते हैं कई छोटे-छोटे देश
आह! कितने भोले हैं हम और हमारे
पूर्वज
और जाने कब से इनकी शानदार मजारों
पर
आज भी उमड़ती है भीड़ हमारे लोगों
की
कटाकर टिकट, पंक्तिबद्ध
कैसे मरे जाते हैं धक्का-मुक्की
सहते
जैसे याद कर रहे हों अपने पुरखों
को
आह! कितने भोले हैं
हम
सदियों से...
नहीं सदियों तो छोटी गिनती है
सही शब्द है युगों से
हाँ, युगों से हम
ठहरे भोले-भाले
ये आये और ऐसे घुले-मिले
कि हम भूल गये अपनी शुचिता
आस्था की सहस्रों धाराओं में से
समझा एक और नई धारा इन्हें
हम जो नास्तिकता को भी
समझते हैं एक तरह की आस्तिकता
बाज़ार रहें आबाद
कि बनकर व्यापारी ही तो आये थे वे...
बेशक, वे व्यापारी ही
थे
जैसे कि हम भी हैं व्यापारी ही
हम अपना माल बेचना चाहते है
और वे अपना माल बेचना चाहते हैं
दोनों के पास ग्राहकों की सूचियाँ
हैं
और गौर से देखें तो अब भी
सारी दुनिया है एक बाज़ार
इस बाज़ार में प्रेम के लिए जगह है
कम
और नफरत के लिए जैसे खुला हो आकाश
नफरतें न हों तो बिके नहीं एक भी
आयुध
एक से बढ़कर एक जासूसी के यंत्र
और भुखमरी, बेकारी, महामारी के
लिए नहीं
बल्कि रक्षा बजट में घुसाते हैं
गाढे पसीने की तीन-चौथाई कमाई
जगाना चाह रहा हूँ कबसे
जागो, और खदेड़ो इन्हें यहाँ से
ये जो व्यापारी नहीं
बल्कि एक तरह की महामारी हैं
हमारे घर में घुसी बीमारी हैं....
प्रेम के ढाई आखर से नहीं चलते
बाज़ार
बाज़ार के उत्पाद बिकते हैं
नफरत के आधार पर
व्यापार बढाना है तो
बढानी होगी नफरत दिलों में
इस नफरत को बढाने के लिए
साझी संस्कृति के स्कूल
करने होंगे धडाधड बंद
और बदले की आग से
सुलगेगा जब कोना-कोना
बाज़ार में रौनक बढ़ेगी
No comments:
Post a Comment