बर्फ और आग : निदा नवाज़
निदा नवाज़ कश्मीर घाटी में, बिना किसी सुरक्षा घेरे में रहे, आम लोगों के बीच रहकर अभिव्यक्ति के खतरे उठा रहे हैं। पंद्रह वर्ष पूर्व उनका एक कविता संग्रह ‘अक्षर-अक्षर रक्त भरा’ प्रकाशित हुआ था जब घाटी में दहशतगर्दी चरम पर थी। सीमा पार से अलगाववाद को मिलता समर्थन भारतीय प्रशासन के लिए हमेशा चिंता का कारण रहा है ऐसे में अपने लोगों के मन की बात को कठोरता से वृहद जनमानस तक पहुंचाने का बीड़ा निदा नवाज़ ने उठाया है, जो काफी स्तुत्य है और बेशक इससे उन्हें भी मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना से गुज़रना पड़ा है।
जिन परिस्थितियों में निदा नवाज़ सृजनरत हैं वहां अस्मिता, राष्ट्रीयता और साम्प्रदायिकता के मसले बेहद उलझे हुए हैं कि उस पर बात करते हुए अरझ जाने का खतरा बना रहता है। निदा नवाज़ अपनी सीमाएं जानते हैं और बड़ी शालीनता से आम कश्मीरीजन की पीड़ा को स्वर देने का विनम्र प्रयास करते हैं। ‘बर्फ और आग’ में भी निदा नवाज़ ने लाऊड हुए बिना अपने लोगों की पीड़ा का सटीक दस्तावेजीकरण किया है। हिन्दी मेें ये कविताएं इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं कि इन कविताओं के ज़रिए हम कश्मीरियत और कश्मीरीजन की पीड़ा को व्यापक रूप से जान पाते हैं। कवि इन विपरीत परिस्थितियों में भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ता और यही कवि और कविता की विजय है।
‘किसी सुनामी की तरह/
रास्ता निकालती है
मेरी रचना
मेरे सारे कबूतर लौट आते हैं वापस
छिप जाते हैं
मेरी बौद्धिक कोशिकाओं में
और एक ऊंची उड़ान भरने के लिए/
आने वाले करोड़ों वर्षोें पर फैले
बहुत सारे आसमानों पर...’ (पृ. 11)
संग्रह की तमाम कविताएं जैसे बड़ी शिद्दत से पाठक से कनेक्ट होती हैं और बेधड़क सम्वाद करती हैं। फै़ज़ के पास जिस तरह से ‘सू ए यार से कू ए दार’ की बातें होती हैं उसी तरह से निदा नवाज़ एक साथ बर्फ़ और आग के गीत गाते हैं। वे बहुत चैकन्ने कवि हैं जो जानते हैं कि---
‘आम लोगों को नींद में मारने के लिए
दो बड़े हथियार थे उनके पास
धर्म भी
और राजनीति भी!’
निदा नवाज़ ऐसे लोगों के बीच सृजनरत हैं जहां---
‘उस शहर के बुद्धिजीवी
दर्शन के जंगलों में
सपनों को ओढ़कर
सो जाते हैं
और बस्ती के बीच
तर्क का हो जाता है अपहरण!’
मेरा विचार है कि निदा नवाज़ की कविताओं को इसलिए पढ़ा जाना ज़रूरी है कि इसमें एक ऐेसी नागरिक पीड़ा व्यक्त है जिससे देश के अन्य हिस्से के कवि नहीं जूझा करते...रोजी, रोटी, मकान के अलावा जो देशभक्ति का सबूत मांगेे जाने की पीड़ा हैे उसे जानने के लिए इन कविताओं को अवश्य पढ़ा जाना चाहिए।
बर्फ़ औेर आग: निदा नवाज़: 2015
पृ. 112 मूल्य: 235.00
प्रकाशक: अंतिका प्रकाशन, सी-56 / यूजीएफ-4, शालीमार गार्डन, एक्सटेंशन 2 गाजियाबाद उप्र
इस समय की पटकथा : शहंशाह आलम
पृथ्वी, प्रकृति, परिवेश और लोक के इर्द-गिर्द बड़ी बारीकी से बुनी गई कविताएं यदि पढ़नेे को मिलें तो बरबस शहंशाह आलम का नाम याद आता है। शहंशाह आलम हिन्दुस्तानी समाज की घरहू बनावट और उसकी तासीर के अद्भुत चित्रकार हैं। वे कविताओं में बोलते हैं तो शब्दों से जैसे रंग झरते हैं, आकृतियों आकार लेती हैं और एक अनहद नाद सा गूंजता है। यही तो कविता के टूल्स हैं जिन पर शहंशाह आलम की सिद्धहस्त पकड़ है। उनकी कविताओं का पैटर्न बरबस पाठकों को अपने जादू से चकित कर देेता हैै।
जैैसे--‘एक चिडि़या उड़ती है
औैर छू आती है इंद्रधनुष
यह रंग अद्भुत था
इस पूरे समय में
उस हत्यारे तक के लिए।’
एक अद्भुत राजनीतिक चेतना से लैस है कवि। इसमें बिहार प्रदेश के आमजन की सोच को भी समझने का प्रयास किया है और समसामयिक राजनीति पर बड़ा कटाक्ष भी है---
‘यह बड़ा भारी आयोजन था
उनके द्वारा भव्य और अंतर्राष्ट्रीय भी
इसलिए कि इस महाआयोेजन में
जनतंत्र को हराया जाना था
भारी बहुमत से
मित्रों, निकलो अब इस घर से
अब यहां न जन है न जनतंत्र!’
तो शहंशाह आलम की कविता में एक तरफ कोमल शब्दावली है तो दूजी तरफ अनायास गूंजता सटायर है जोे कवि को अपने समय का सजग कवि बनाने में सक्षम है।
इस समय की पटकथा: शहंशाह आलम / 2015
पृ. 130 मूल्य 150 प्रकाशक शब्दा प्रकाशन, 63 एमआईजी हनुमान नगर पटना बिहार
इस रूट की सभी लाइने व्यस्त हैं : सुशांत सुप्रिय
शब्द-विरोधी समय में हिन्दी जगत में कविताओं का टोटा नहीं है। बिना किसी औपचारिकता के कवि अपनी अभिव्यक्ति के बल पर पाठकों से सम्वाद करने की मुहिम छेड़े हैं। चूंकि लड़ाई एक-आयामी नहीं है, दुश्मन भी बहुरूपिये हैं तो फिर कविता ही ऐसा औज़ार बनती है जिससे कवि अपनी पीड़ा, विडम्बना और उत्पीड़न से लड़ना चाहता है। यही कारण है कि आज छपी कविता भी दीख जाती हैं और आभाषी संसार में भी कविता ही एक-दूसरे को जोड़े रक्खी है। इस कठिन समय में हिन्दी कविता आलोचकों की धता बताकर अपने लिए एक सहज फार्म भी खोज रही है।
इस सदी में यांत्रिकता और कृत्रिमता से जूझते आम आदमी के जीवन में विकल्पहीनता को चैलेंज करती कविताएं इस संग्रह को विशिष्ट बनाती हैं। सुशांत सुप्रिय की कविताएं हाशिए के लोगों के साथ मज़बूती से खड़ी होती हैं। शिल्प और संवेदना के स्तर पर कविताएं प्रभावी हैं।
इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं: सुशांत सुप्रिय: मूल्य 335.00
अंतिका प्रकाशन, सी-56//यूजीएफ 4, शालीमार गार्डन, गाजियाबाद, उप्र
निदा नवाज़ कश्मीर घाटी में, बिना किसी सुरक्षा घेरे में रहे, आम लोगों के बीच रहकर अभिव्यक्ति के खतरे उठा रहे हैं। पंद्रह वर्ष पूर्व उनका एक कविता संग्रह ‘अक्षर-अक्षर रक्त भरा’ प्रकाशित हुआ था जब घाटी में दहशतगर्दी चरम पर थी। सीमा पार से अलगाववाद को मिलता समर्थन भारतीय प्रशासन के लिए हमेशा चिंता का कारण रहा है ऐसे में अपने लोगों के मन की बात को कठोरता से वृहद जनमानस तक पहुंचाने का बीड़ा निदा नवाज़ ने उठाया है, जो काफी स्तुत्य है और बेशक इससे उन्हें भी मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना से गुज़रना पड़ा है।
जिन परिस्थितियों में निदा नवाज़ सृजनरत हैं वहां अस्मिता, राष्ट्रीयता और साम्प्रदायिकता के मसले बेहद उलझे हुए हैं कि उस पर बात करते हुए अरझ जाने का खतरा बना रहता है। निदा नवाज़ अपनी सीमाएं जानते हैं और बड़ी शालीनता से आम कश्मीरीजन की पीड़ा को स्वर देने का विनम्र प्रयास करते हैं। ‘बर्फ और आग’ में भी निदा नवाज़ ने लाऊड हुए बिना अपने लोगों की पीड़ा का सटीक दस्तावेजीकरण किया है। हिन्दी मेें ये कविताएं इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं कि इन कविताओं के ज़रिए हम कश्मीरियत और कश्मीरीजन की पीड़ा को व्यापक रूप से जान पाते हैं। कवि इन विपरीत परिस्थितियों में भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ता और यही कवि और कविता की विजय है।
‘किसी सुनामी की तरह/
रास्ता निकालती है
मेरी रचना
मेरे सारे कबूतर लौट आते हैं वापस
छिप जाते हैं
मेरी बौद्धिक कोशिकाओं में
और एक ऊंची उड़ान भरने के लिए/
आने वाले करोड़ों वर्षोें पर फैले
बहुत सारे आसमानों पर...’ (पृ. 11)
संग्रह की तमाम कविताएं जैसे बड़ी शिद्दत से पाठक से कनेक्ट होती हैं और बेधड़क सम्वाद करती हैं। फै़ज़ के पास जिस तरह से ‘सू ए यार से कू ए दार’ की बातें होती हैं उसी तरह से निदा नवाज़ एक साथ बर्फ़ और आग के गीत गाते हैं। वे बहुत चैकन्ने कवि हैं जो जानते हैं कि---
‘आम लोगों को नींद में मारने के लिए
दो बड़े हथियार थे उनके पास
धर्म भी
और राजनीति भी!’
निदा नवाज़ ऐसे लोगों के बीच सृजनरत हैं जहां---
‘उस शहर के बुद्धिजीवी
दर्शन के जंगलों में
सपनों को ओढ़कर
सो जाते हैं
और बस्ती के बीच
तर्क का हो जाता है अपहरण!’
मेरा विचार है कि निदा नवाज़ की कविताओं को इसलिए पढ़ा जाना ज़रूरी है कि इसमें एक ऐेसी नागरिक पीड़ा व्यक्त है जिससे देश के अन्य हिस्से के कवि नहीं जूझा करते...रोजी, रोटी, मकान के अलावा जो देशभक्ति का सबूत मांगेे जाने की पीड़ा हैे उसे जानने के लिए इन कविताओं को अवश्य पढ़ा जाना चाहिए।
बर्फ़ औेर आग: निदा नवाज़: 2015
पृ. 112 मूल्य: 235.00
प्रकाशक: अंतिका प्रकाशन, सी-56 / यूजीएफ-4, शालीमार गार्डन, एक्सटेंशन 2 गाजियाबाद उप्र
इस समय की पटकथा : शहंशाह आलम
पृथ्वी, प्रकृति, परिवेश और लोक के इर्द-गिर्द बड़ी बारीकी से बुनी गई कविताएं यदि पढ़नेे को मिलें तो बरबस शहंशाह आलम का नाम याद आता है। शहंशाह आलम हिन्दुस्तानी समाज की घरहू बनावट और उसकी तासीर के अद्भुत चित्रकार हैं। वे कविताओं में बोलते हैं तो शब्दों से जैसे रंग झरते हैं, आकृतियों आकार लेती हैं और एक अनहद नाद सा गूंजता है। यही तो कविता के टूल्स हैं जिन पर शहंशाह आलम की सिद्धहस्त पकड़ है। उनकी कविताओं का पैटर्न बरबस पाठकों को अपने जादू से चकित कर देेता हैै।
जैैसे--‘एक चिडि़या उड़ती है
औैर छू आती है इंद्रधनुष
यह रंग अद्भुत था
इस पूरे समय में
उस हत्यारे तक के लिए।’
एक अद्भुत राजनीतिक चेतना से लैस है कवि। इसमें बिहार प्रदेश के आमजन की सोच को भी समझने का प्रयास किया है और समसामयिक राजनीति पर बड़ा कटाक्ष भी है---
‘यह बड़ा भारी आयोजन था
उनके द्वारा भव्य और अंतर्राष्ट्रीय भी
इसलिए कि इस महाआयोेजन में
जनतंत्र को हराया जाना था
भारी बहुमत से
मित्रों, निकलो अब इस घर से
अब यहां न जन है न जनतंत्र!’
तो शहंशाह आलम की कविता में एक तरफ कोमल शब्दावली है तो दूजी तरफ अनायास गूंजता सटायर है जोे कवि को अपने समय का सजग कवि बनाने में सक्षम है।
इस समय की पटकथा: शहंशाह आलम / 2015
पृ. 130 मूल्य 150 प्रकाशक शब्दा प्रकाशन, 63 एमआईजी हनुमान नगर पटना बिहार
इस रूट की सभी लाइने व्यस्त हैं : सुशांत सुप्रिय
शब्द-विरोधी समय में हिन्दी जगत में कविताओं का टोटा नहीं है। बिना किसी औपचारिकता के कवि अपनी अभिव्यक्ति के बल पर पाठकों से सम्वाद करने की मुहिम छेड़े हैं। चूंकि लड़ाई एक-आयामी नहीं है, दुश्मन भी बहुरूपिये हैं तो फिर कविता ही ऐसा औज़ार बनती है जिससे कवि अपनी पीड़ा, विडम्बना और उत्पीड़न से लड़ना चाहता है। यही कारण है कि आज छपी कविता भी दीख जाती हैं और आभाषी संसार में भी कविता ही एक-दूसरे को जोड़े रक्खी है। इस कठिन समय में हिन्दी कविता आलोचकों की धता बताकर अपने लिए एक सहज फार्म भी खोज रही है।
इस सदी में यांत्रिकता और कृत्रिमता से जूझते आम आदमी के जीवन में विकल्पहीनता को चैलेंज करती कविताएं इस संग्रह को विशिष्ट बनाती हैं। सुशांत सुप्रिय की कविताएं हाशिए के लोगों के साथ मज़बूती से खड़ी होती हैं। शिल्प और संवेदना के स्तर पर कविताएं प्रभावी हैं।
इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं: सुशांत सुप्रिय: मूल्य 335.00
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