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Thursday, December 31, 2015

खनिकर्मी

कोयला खदान की
काली अँधेरी सुरंगों में
निचुड़े तन-मन वाले खनिकर्मी के
कैप लैम्प की पीली रौशनी के घेरे से
कभी नहीं झांकेगा कोई सूरज 
नहीं दीखेगा नीला आकाश
एक अँधेरे कोने से निकलकर
दूसरे अँधेरे कोने में दुबका रहेगा ता-उम्र वह
पता नहीं किसने, कब बताया ये इलाज
कि फेफड़ों में जमते जाते कोयला धूल की परत को
काट सकती है सिर्फ दारु
और ये दारू ही है जो एक-दिन नागा कराकर
फिर ले आती है उसे
कोयला खदान की अँधेरी सुरंगों में
कभी-कभी औरतों और अफसरों को गरियाने के बाद
बड़ी गंभीर मुद्रा में बात करते हैं वे
तो बताते हैं कि ज़िन्दगी एक सर्कस है
हर दिन तीन शो और हर शो में जान की बाज़ी
यही तो खनिकर्मी का जीवन
'इत्ता रिस्क तो सीमा पर सिपाहियों को भी नहीं होता साब
जंग-लड़ाई तो कभी छिड़ती है
खनिकर्मी तो हर दिन एक जंग लड़ता है
एक जंग जीतता है जीवन की, उम्मीदों की...
(उम्मीदों का दामन थामे सभी कोयला खनिकर्मियों को नव-वर्ष की शुभकामनायें)

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