अदनान कफ़ील दरवेश की कविताएँ :
(ये कवितायेँ तात्कालिकता की तोहमत से आज़ाद कवितायेँ हैं और एक नई पीढ़ी की सलामती के लिए हमारी निर्दयता और लापरवाही की चश्मदीद हैं.)
एक
(ये कवितायेँ तात्कालिकता की तोहमत से आज़ाद कवितायेँ हैं और एक नई पीढ़ी की सलामती के लिए हमारी निर्दयता और लापरवाही की चश्मदीद हैं.)
एक
बच्चे एक दिन
( क़ुरआन शैली में)
बच्चे
एक दिन
अपनी राख से उठेंगे
और पूछेंगे हमसे
बताओ !
हमें किस जुर्म में मारा गया ?
एक दिन
अपनी राख से उठेंगे
और पूछेंगे हमसे
बताओ !
हमें किस जुर्म में मारा गया ?
दो
बच्चे उठेंगे अपनी राख से
देखना
एक दिन
बच्चे उठेंगे अपनी राख से
बहुत छोटे-छोटे बच्चे
अपनी छोटी-छोटी मुट्ठियों में
पकड़ लेंगे पूरा का पूरा आकाश
सूरज और चांद से उलझते हुए
वे चलते चले जाएँगे अंतरिक्ष के उस पार
एक नई दुनिया बसाने के लिए
जहां उन्हें इतनी छोटी उम्र में
सिर्फ़ खेलने का अवकाश होगा
इस तरह वे राख में बेसुध सोने से बच निकलेंगे !
एक दिन
बच्चे उठेंगे अपनी राख से
बहुत छोटे-छोटे बच्चे
अपनी छोटी-छोटी मुट्ठियों में
पकड़ लेंगे पूरा का पूरा आकाश
सूरज और चांद से उलझते हुए
वे चलते चले जाएँगे अंतरिक्ष के उस पार
एक नई दुनिया बसाने के लिए
जहां उन्हें इतनी छोटी उम्र में
सिर्फ़ खेलने का अवकाश होगा
इस तरह वे राख में बेसुध सोने से बच निकलेंगे !
तीन
मर्सिया
"जाते हुए कहते हो क़यामत को मिलेंगे,
क्या ख़ूब क़यामत का है गोया कोई दिन और !"
(मिर्ज़ा ग़ालिब)
क्या ख़ूब क़यामत का है गोया कोई दिन और !"
(मिर्ज़ा ग़ालिब)
ऐ काश !
मेरी देह में हज़ारों-हज़ार स्तन उग आएँ
जिसे तुम चुभला-चुभला कर
ख़ाली कर देते
मेरे बच्चों !
मेरी देह में हज़ारों-हज़ार स्तन उग आएँ
जिसे तुम चुभला-चुभला कर
ख़ाली कर देते
मेरे बच्चों !
मेरे बच्चों तुम अपनी तोतली ज़ुबानों से
किसे पुकार रहे हो
इस स्याह होती रात में !
किसे पुकार रहे हो
इस स्याह होती रात में !
अलमास से चमकते तुम्हारे होंठों पर
इतनी राख कौन डाल गया है
मेरे बच्चों !
इतनी राख कौन डाल गया है
मेरे बच्चों !
तुम उठो और मेरी छाती से लग जाओ
मेरे बच्चों
तुम उठो और इस दुनिया को
इसी वक़्त बदल डालो !
मेरे बच्चों
तुम उठो और इस दुनिया को
इसी वक़्त बदल डालो !
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