(हमारे जमाने के बेहतरीन ग़ज़लगो नूर मुहम्मद नूर साहब की गज़लें इस अंक में शामिल करते हुए मुझे फख्र हो रहा है कि 'नूर' हमारी मिली-जुली संस्कृति के पैरोकार हैं और इंसानियत के लिए गज़ब का जज्बा है उनकी लेखनी में...'नूर' की चंद ताज़ा-तरीन ग़ज़लें हाज़िर हैं...---अनवर सुहैल)
एक
क्या करेगा, बचा के घर अपना
अपना हिंदोस्तां, बचा पहले
अपना हिंदोस्तां, बचा पहले
वो जो उठने लगा है अब दिल से
हां, ये ज़िंदा धुआं, बचा पहले
हां, ये ज़िंदा धुआं, बचा पहले
आज ख़तरों में है,,, यही ज़्यादा
मिल्लतों का मकां,,,,बचा पहले
मिल्लतों का मकां,,,,बचा पहले
दास्तानों मे ही ,,,,,,न रह जाए
नूर की दास्तां,,,, बचा पहले
नूर की दास्तां,,,, बचा पहले
क्या से क्या हो रहीं हैं अब ख़ुशियां
क़हक़हे,,,,, कहकशां, बचा पहले
क़हक़हे,,,,, कहकशां, बचा पहले
उट्ठ। मेरे मेह्रबां,,,, बचा पहले
ज़िंदगी के निशां,,,, बचा पहले।
ज़िंदगी के निशां,,,, बचा पहले।
दो
कभी ज़ेर था अब,, ज़बर हो रहा हूं
पढ़ो भी मुझे,, अब ख़बर हो रहा हूं
पढ़ो भी मुझे,, अब ख़बर हो रहा हूं
चलो सीख लो,, मुझसे मिर्ची लगाना
कि अब तेज़ - तीखा, हुनर हो रहा हूं
कि अब तेज़ - तीखा, हुनर हो रहा हूं
चलो, मत चलो, मैं कहां कह रहा कुछ
डगर में हूं अपनी,, डगर हो रहा,,, हूं
डगर में हूं अपनी,, डगर हो रहा,,, हूं
मगर हो रहा है ये अक्सर कि मैं,, भी
कभी मै अगर या,,, मगर हो रहा हूं
कभी मै अगर या,,, मगर हो रहा हूं
कभी दस्तोपा तो,कभी दिल ही दिल था
जिगर थाम 'नूरे' जिगर हो रहा हूं
तीन
जिगर थाम 'नूरे' जिगर हो रहा हूं
तीन
सारा कचरा,, बुहार कर लिखिए
दिल से हर डर को, झार कर लिखिए
दिल से हर डर को, झार कर लिखिए
ताकि सबको दिखे, कि सचमुच है
ज़ख़्म थोड़ा,,,, उघार कर लिखिए
ज़ख़्म थोड़ा,,,, उघार कर लिखिए
इतना ख़ूंख़ार है,,,, कि अब उसका
सारा पानी,,,,, उतार कर,,,, लिखिए
सारा पानी,,,,, उतार कर,,,, लिखिए
दुख भी दुख दुख नहीं लगेगा मियां
दुख को,,, थोड़ा संवार कर लिखिए
दुख को,,, थोड़ा संवार कर लिखिए
अब भी कुछ रौशनी,, बची है उधर
थोड़ा बाएं,,,,,, निहार कर लिखिए ।
थोड़ा बाएं,,,,,, निहार कर लिखिए ।
चार
बस्तियों में, सर छुपाने को, ठिकाना ढ़ूंढ़ना
बंजरों मे पागलों सा,,,, , आबोदाना ढ़ूंढ़ना
बंजरों मे पागलों सा,,,, , आबोदाना ढ़ूंढ़ना
जिस तरह सहरा में पानी, ढ़ूंढ़ते हैं तिश्ना लब
दोस्तों के बीच रहकर,,, , दोस्ताना ढ़ूंढ़ना
दोस्तों के बीच रहकर,,, , दोस्ताना ढ़ूंढ़ना
आदमी में आदमीयत,,, और ख़ुश्बू फूल में
हो सके तो शह्र में अब,, ये ख़ज़ाना ढ़ूंढ़ना
हो सके तो शह्र में अब,, ये ख़ज़ाना ढ़ूंढ़ना
ढ़ूंढ़ते हैं अब तेरे हमअस्र,,, मक़्तल में पनाह
नूर तुम लफ़्ज़ों में तेवर,,, क़ातिलाना ढ़ूंढ़ना
नूर तुम लफ़्ज़ों में तेवर,,, क़ातिलाना ढ़ूंढ़ना
पांच
नहीं ये कोई परिंदा, जो आसमान में है
ये मेरे गांव की मिट्टी है जो उड़ान मे है
ये मेरे गांव की मिट्टी है जो उड़ान मे है
अभी भी डरते हैं अल्फ़ाज़, मुह मे आते हुए
अभी भी आग पुरानी,,,,, मेरी ज़ुबान मे है
अभी भी आग पुरानी,,,,, मेरी ज़ुबान मे है
जो मुझमें रोज़ घुमड़ते हैं, शे'र बन- बनकर
वो दर्द ,,, किसके उजड़ने की दास्तान में है
वो दर्द ,,, किसके उजड़ने की दास्तान में है
अभी भी जिस्म मेरा ये, मजूर जैसा ही
अभी भी जान वही नूर,, जो किसान मे है
अभी भी जान वही नूर,, जो किसान मे है
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