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Thursday, April 16, 2020

बच गए तो



यदि हम बच गए
तो भी क्या वाकई बचे रह पाएंगे
मंच पर मृत्यु का दृश्य सजा है
एक-एक कर कम होते जा रहे 
कांधा लगाने वाले और रोने वाले भी
गिनती के पात्र हैं और नेपथ्य में सूत्रधार
नाट्यशाला के दर्शक भी तो
एक-एक कर लुढ़क रहे देखो
मौत का डर हर तरफ है
भूख से या बीमारी से
दोनों हालात एक जैसे हैं
जीवित लोग जिनके घरों में
दो महीने का राशन मौजूद है
वे सिर्फ अपनों को
बचा ले जाने की जुगत में हैं
ऐसे निर्मम समय में
पूर्णतः सुरक्षित कुछ लोग
जो चाह रहे इस आपदा में
भूख, बीमारी के अलावा
नफ़रत भी बन जाए एक कारण
मौत तो हो ही रही है
एक कम, एक ज़्यादा
कोई फ़र्क नहीं पड़ता।।।

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