शुक्रवार, 31 जनवरी 2025
रविवार, 26 जनवरी 2025
सिर्फ़ तुम (एक, दो, तीन)
।।एक।।।
मैं आऊंगा तो सिर्फ़ तुम्हारे लिए
मुझे मालूम है कि सिर्फ़ तुम्हें ही
मेरा इंतज़ार रहता है और साथ ही
तुम्हारी आँखों में, पानियों के वरक़ पर
कोई भी पढ़ ले लेकिन किसको गरज़
हमारी - तुम्हारी कहानी के समझौतों को
सुने - गुने, जाने - समझे, कि मतलबी दौर में
पुरानी कहानियाँ भुला दी जाती हैं।।।।
।।। दो।।।
तुम्हें खोजता हूँ कि मेरी आँखें
देख पाती हैं सिर्फ़ उतना ही जो सामने है
इसमें फँसा जा सकता है, कहीं निकला नहीं
कि फँसना ही निजात है निकलना नहीं
और मैंने बच निकलने कि राह चुनी थी
अब तुम्हें खोजता हूँ कि इसी में निजात है
तुम जो सिर्फ़ देना जानते हो
सुकून के अल्फ़ाज़ और खूब - खूब प्यार
कि दुःख - दर्दों की भनक भी नहीं लगने देते
शुक्रवार, 3 जनवरी 2025
सह अस्तित्व के पुरोधा
एक
सुर में बजता रहता एक गीत
हम हैं अहिंसक, दयालू
सहिष्णु और कोमल हृदयी
सह-अस्तित्व के पुरोधा
वसुधैव-कुटुम्बकम के पैरोकार
मैंने कितनी बार कहा भाई
तुम्हारे शब्दों के अर्थ खो चुके हैं
तुम्हारे गीतों से भाव गुम हो गये
एक बार हमें इन गीतों को
इस तरह से भी गुनगुनाना चाहिए
कि हम हिंसक हैं, क्रूर हैं,
असहिष्णु हैं और बेहद कठोर हृदयी भी
हमनें ठुकराया है सह-अस्तित्व के सरोकार
मुझे पूरा यकीन है भाई
इस तरह गाकर यह गीत
हम जान जायेंगे कि हमें
एक बेहतर इंसान बनने के लिए
अभी करनी हैं बहुत सी मंजिलें तय
कि बहुत कठिन है डगर पनघट की...
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