रंजिशों के दौर में भी कह रहे हैं मुलाक़ात होनी चाहिए और बात होनी चाहिए रंजिशी माहौल में भी दो किनारों को जोड़ता सा एक जो पुल बन रहा है तामीर उसकी चलती रहे कोशिशें होती रहें कि गाहे-बगाहे बात होनी चाहिए
एक रिश्ते का तसव्वुर झिलमिलाता, धुंधला होकर गुम होता सा और उसी बनते-बिगड़ते रिश्ते की कसमें खा-खाकर रंजिशों के नेजे से दोस्ती से जख्म हमेशा हरे रहेंगे….
ये बता दो पूछते हैं लोग सारे दोस्ती करनी नहीं जब फिर वहां पर कौन सी मजबूरियाँ हैं सच कहूँ तो गौर कर लो रिश्तों के बीच देखो दूरियां ही दूरियां हैं दूरियां बढ़ती रहेंगी और बनने से पहले ही टूटकर गिर जाएगा पुल….
रंजिशें, कडुवाहटें, सरगोशियाँ सब दोस्ती की राह में दुश्वारियां पैदा करते हैं लेकिन जब इनसे उबरकर राह तय हो जाती है दोस्ती की मंजिल ही आती है…
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