मुझे अक्सर सुनाई देती हैं
अनहोनियों की आहटें
लोग समझाते हैं तुम्हारा वहम है ये
मैं खुद को भी समझाने लगता हूँ
वहम ही होगा लेकिन वहम होता नहीं ऐसा
वहम जब हकीकत के करीब बैठा हो
तो उसे वहम कहना बेमानी है
शुभचिंतक बन कर वे फिर आकर समझाते हैं
काहे लिखते हो वैसी कवितायेँ जिनसे बढ़ता हो तनाव
देशप्रेम, श्रृंगार, विरह या वात्सल्य की
रूप-कलावादी कविताएँ क्यों नहीं लिखते
माँ, पिता, छाता, कुर्सी, टेबिल, चिड़िया,लडकी या
मोची, धोबी, गायक, चित्रकार पर भी
लिखी जा सकती हैं बेहतरीन कविताएँ
और देखो ऐसी कविताओं को हम सम्मानित भी करते हैं
तुम जो लिखते हो, जो पढ़ते हो
उससे कुछ हासिल नहीं होगा सिवाय तनाव के
उनकी सलाह मेरे किसी काम की नहीं
मुझे अक्सर सुनाई देती हैं
गला घोंटने से पैदा हुई घुटी-घुटी आवाजें
और बारहा ऐसा लगता जैसे
कोई आ रहा हो दबे पाँव चुपके से
कभी बेहयाई के साथ कोई बेधड़क घुसा चला आता है
और धमका जाता है कि मेरा एकांत
अब उनके कैमरे की ज़द में है
ये आहटें मेरे पूरे वजूद को
परेशान किये रहती हैं आजकल
मेरी इस कविता को पढ़ते हुए
तुम भी सोच रहे होगे कि बेशक
ऐसी ही तनाव पैदा करने वाली आवाजें
तुम्हारा भी पीछा नहीं छोड़ रही हैं
इन आवाजों से
डरावनी आहटों से
कैसे मिले निजात
कोई तो होगी राह?