एक
बेहतर कल की उम्मीद
हम सोचते हैं कि कल शायद
सब ठीक हो जाए
उम्मीद बांधे रखते हैं
कि कल आज से बेहतर ही होगा
इस बेहतर कल की
उम्मीद का दामन थामे
खप गई जाने कितनी पीढ़ियां
यह तो अच्छा है कि इंसान
थोपे हुए हमलों को
ठेंगा दिखाकर भी
देख लेता है सपने
एक बेहतर कल के सपने
मज़बूत किलों के बंद कमरों में
ज़मीनी-खुदा इस निष्कर्ष पर
पहुंच ही जाते हैं कि बहुत जब्बर है
इंसान की जिजीविषा
बहुत चिम्मड़ है इंसान की खाल
और किले की हिफ़ाज़त के लिए
ख़ामोश और मुस्तैद इंसानों की
ज़रूरत हमेशा बनी रहेगी।
दो
कोई नहीं खड़ा है साथ
कौन खड़ा है साथ
क्या किसी ने बढ़ाया हाथ
या, इस बार भी बे-यारो-मददगार
मायूस छोड़ दिया जाऊँगा
नुकीले दांतों, तीखे नाखूनों वाले
सर्द धमकियों वाले भेड़ियों के बीच
कोई नहीं खडा है साथ
लोग अब भूल से भी देखते नहीं
कि कहीं सुहानुभूति के कीटाणु जाग न जाए
इंसानियत की सुप्त चेतना झकझोर न दे
यह ऐसा वक़्त है जब
सिर्फ उतना ही देखने की इजाज़त है
जिससे अपना कोई नुकसान न हो
कोई नहीं खडा है साथ
यह तो होना था एक दिन
कोई क्यों देगा साथ
जब हम भी तो किसी के लिए
खड़े होने से करते थे परहेज़
बहुत सरल तर्क था कि
जिसकी फटी है वही सिलेगा....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें