बुधवार, 24 दिसंबर 2025


एक 

 बेहतर कल की उम्मीद


हम सोचते हैं कि कल शायद

सब ठीक हो जाए

उम्मीद बांधे रखते हैं

कि कल आज से बेहतर ही होगा

इस बेहतर कल की

उम्मीद का दामन थामे

खप गई जाने कितनी पीढ़ियां

यह तो अच्छा है कि इंसान

थोपे हुए हमलों को

ठेंगा दिखाकर भी

देख लेता है सपने

एक बेहतर कल के सपने

मज़बूत किलों के बंद कमरों में

ज़मीनी-खुदा इस निष्कर्ष पर

पहुंच ही जाते हैं कि बहुत जब्बर है

इंसान की जिजीविषा

बहुत चिम्मड़ है इंसान की खाल

और किले की हिफ़ाज़त के लिए

ख़ामोश और मुस्तैद इंसानों की

ज़रूरत हमेशा बनी रहेगी।





दो 

कोई नहीं खड़ा है साथ 



कौन खड़ा है साथ 

क्या किसी ने बढ़ाया हाथ 

या, इस  बार भी बे-यारो-मददगार 

मायूस छोड़ दिया जाऊँगा 

नुकीले दांतों, तीखे नाखूनों वाले 

सर्द धमकियों वाले भेड़ियों के बीच 


कोई नहीं खडा है साथ 

लोग अब भूल से भी देखते नहीं 

कि कहीं सुहानुभूति के कीटाणु जाग न जाए 

इंसानियत की सुप्त चेतना झकझोर न दे 

यह ऐसा वक़्त है जब 

सिर्फ उतना ही देखने की इजाज़त है 

जिससे अपना कोई नुकसान न हो 


कोई नहीं खडा है साथ 

यह तो होना था एक दिन 

कोई क्यों देगा साथ 

जब हम भी तो किसी के लिए 

खड़े होने से करते थे परहेज़ 

बहुत सरल तर्क था कि 

जिसकी फटी है वही सिलेगा....


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