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Thursday, August 16, 2012

क्रान्ति या भ्रान्ति


क्रान्ति या भ्रान्ति मजमा जुटाना
बहुत आसान है
क्योंकि मजमे का
कोई मज़हब नही होता
कोई जात नही होती
कोई विचारधारा नही होती
मजमा तो जूता लेता है मदारी
बजाकर डुग-डुगी, डमरू
नचाकर बन्दर-भालू
दिखाकर बाजीगिरी
मजमा होता है सिर्फ bheed
मजमा पैदा नही करता क्रान्ति
मजमे से बढ़ती है भ्रान्ति
मजमा अकारण खुश होकर हंसने लगता है
मजमा तालियाँ पीटने का अभ्यस्त होता है
मजमे के पास नही होता दिल-दिमाग
मजमे का अपना कोई होता नही चरित्र
मजमे को देख किसी क्रान्ति का आंकलन मत कर लेना दोस्त
मजमा बड़ी आसानी से बिखर जाता है
मजमे में नही होती प्रतिरोध की क्षमता
मजमे में नही होती हिम्मत
नही होती मजमे में
एक मुट्ठी में तब्दील होने की ख्वाहिश
एक नारे में बदलने की आकांक्षा
एक निजाम बदलने की ताक़त....

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