बुधवार, 29 अगस्त 2012

झख मार रहा हूँ


कैसे बताऊँ क्या कर रहा हूँ
कह दूँ कि झख मार रहा हूँ
हमेशा तो होते नही बड़े काम
हमेशा तो मिलते नही धांसू आइडियाज़
बैठा हो जब अपने अन्दर एक आलोचक, एक समीक्षक
ऐसे में मुश्किल होता है करना कोई कच्चा काम
पक्के काम कि तलाश में कच्चा छूट जाता है
बदले में माथे पर चिंता कि रेखाएं बढ़ जाती हैं...

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