गुरुवार, 1 नवंबर 2012
खलिहान
फिर कम आने लगे मज़दूर
फिर रुकने लगा खदान का विकास
फिर खिलखिलाने लगे खलिहान
फिर वयस्त हुए किसान...
ये फसल कटाई का उत्सव है दोस्तों
ये सपने पूरे होने की अलामतें हैं
ये आशा और विश्वास वाले दिन हैं
ये एक साल और जी लेने की ख्वाहिशें हैं...
देखो तो कितने खुश हैं किसान
कितनी प्रफुल्लित हैं स्त्रियां
कितने मगन हैं बच्चे
खलिहान की सफाई कर रहा समारू
फडुआ चला रहा मंगल
और झाडू बुहार रही सुखिया...
समारू की बेवा बहिन लीप रही खलिहान
मंगल बाड लगा पशुओं से बचाना चाहता कटी फसल
सुखिया करीने से रख रही कटी फसल
आसमान नीला दिखता रहे यही प्रार्थना करते हैं सब
काले-भूरे बेइमान बादल कुछ दिन न दिखें तो
सब काम ही निपट जाए...
फसल की खेत से खलिहान तक की यात्रा
फिर खलिहान से मकान तक की यात्रा
हो जाए निर्विध्न...
इत्ती छोटी दुआ बस तो मांगता किसान है
उसके बाद इस फसल के कई हिस्सेदार भी तो हैं
घर-परिवार की ज़रूरतें
सेठ-महाजन की किश्तें
और... और...
अंतहीन मुसीबतें....
इनसे बचे तो अगले साल के बीज के लिए
बचा रखना भी है धान...
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कई चाँद थे सरे आसमां : अनुरोध शर्मा
कुमार मुकुल की वाल से एक ज़रूरी पोस्ट : अनुरोध शर्मा पहले पांच पन्ने पढ़ते हैं तो लगता है क्या ही खूब किताब है... बेहद शानदार। उपन्यास की मुख्...

-
बिभूति कुमार झा Anwar Suhail अनवर सुहैल साहेब की लिखी कहानी संग्रह "गहरी जड़ें" पढ़कर अभी समाप्त किया है। बहुत ही सार्थ...
-
आईआईटी खड़गपुर यंग इनोवेटर प्रोग्राम के पहले दौर के लिए आवेदन स्वीकार कर रहा है। पंजीकरण की अंतिम तिथि 12 दिसंबर, 2024 है। यह कार्यक्रम का ...
-
एक सुर में बजता रहता एक गीत हम हैं अहिंसक, दयालू सहिष्णु और कोमल हृदयी सह-अस्तित्व के पुरोधा वसुधैव-कुटुम्बकम के पैरोकार इस गीत को बिना अर्...
बहुत खूबसूरत कविता है। यथार्थ का सौंदर्य भी है और व्यवस्था का विद्रूप भी।
जवाब देंहटाएंयथार्थ को कहती सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंjeevant kavita .badhaee...
जवाब देंहटाएं