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Saturday, April 12, 2014

बिलौटी कहानी पर कृष्ण बलदेव वैद की टिप्पणी

अनवर सुहैल की 'बिलौटी' पढ़कर अरमान हुआ, काश यह कहानी मैंने लिखी होती. इस कहानी में कई खूबियाँ हैं. भाषा के लिहाज से यह कहीं ढीली नही. लेखक की निगाह बारीकियों को पकड़ने में अचूक है. हर दृश्य साफ़-शफ्फाफ है. अति-भावुकता का दाग कहीं नही है. कहीं भी किसी अतिरेक से काम नही लिया गया है, न किसी गलत संकोच से.
दो बड़े चरित्र पगलिया और उसकी बेटी बिलौटी तो अविस्मरनीय हैं ही, छोटे-छोटे अनेक चरित्रों में भी लेखक ने अपनी दक्षता से जान डाल दी है. बिलौटी का इनिशियेशन और फिर उसका खिल-खुलकर एक दबंग, आत्मनिर्भर औरत और माँ बन जाना, यह सब कलात्मक कौशल से दिखाया गया है.
घर-परिवार की सुरक्षा से वंचित पगली माँ और उसकी अदम्य बेटी की यह कहानी यथार्थवादी और प्रगतिवादी अदाओं और आग्रहों से पाक है. सूक्ष्म संकेतों और खुरदुरी तफसीलों के सहारे यह कहानी कड़ी है. हमें न रुलाने की कोशिश करती है और न उपदेश देने की. इसीलिए मुझे रस भी देती है और रास भी आती है.....
-------------------कृष्ण बलदेव वैद (वैचारिकी संकलन, जुलाई १९९७ से साभार)
कहानी 'बिलौटी' पढने के लिए क्लिक करें....


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