सोमवार, 27 मार्च 2017

हम हसेंगे साथी...

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हम हसेंगे साथी
खराब मौसमों में भी
आँधियों की परवाह किये बिना
हम हसेंगे साथी
कि हमारी हंसी 
उन्हें डराती है
खराब मौसमों की साजिशें
तोड़ नहीं पातीं जिजीविषा हमारी
हम उसी लगन से
उसी उत्साह से
फिर-फिर उठ खड़े होते हैं
गमजदा रात में भी नींद का एक छोटा सा टुकड़ा
कितना काफी है एक पूरे दिन को
प्रतिकूलताओं के साथ जीने के बाद
जबकि उनकी नींदों में बेशक हमारी हंसी के ठहाके
किसी भयानक दुस्वप्न की तरह उन्हें जगा देते होंगे
ज़ुल्म करने में ज्यादा तनाव होता होगा
ज़ुल्म सहकर हँसते रहने में
ज़िन्दगी कितनी लज़ीज़ हो जाती है
इसे तुम क्या समझोगे जालिमों?

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