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Thursday, March 9, 2017

दुखिया दास कबीर कब से जाग रहा

कितना शांत सब कुछ
बेआवाज़ है दिशाएं 
नल से टपकती बूंदों की हिमाकत
दीवाल घड़ी की टिक टिक
कोई झींगुर बिना इजाज़त 
करता बाहर झांय-झांय
नींद कोसों दूर आवारा 
मन की बेचैनी देती मात 
देह की थकन को 
जा चुके प्राइम टाइम के स्मार्ट एंकर 
रहस्य या जुर्म परोसने आये 
खौफनाक से चेहरे
गुप्त रोग के चिकित्सक और 
तन्त्र मन्त्र यन्त्र का समय है ये 
गठिया और मधमेह के भ्रमित रोगी 
मोहित से लगा ही दे रहे टॉल फ्री नम्बर
पेमेंट ऑन डिलीवरी की सुविधा जो है
थक चुका देश का मुखिया 
लोकतन्त्र में देने से पहले 
मांगने का अभ्यास करते करते
हर मांगने वाला अभिनय या कहे 
स्वांग करना अवश्य जानता है
इस स्वांग को देखकर 
दाता बहुत जल्द भिखारी बन जाता है
बत्तियां बुझाने से ही ज़रूरी नहीं 
आ जाये नींद 
दुखिया दास कबीर कब से जाग रहा
और सो रहे सुखिया सब संसार
दिमाग की नसें फटने को आतुर हैं
आँखे हैं कि भेदना चाहतीं 
अँधेरे और नाउम्मीदी की दीवार
गलियों के आवारा कुत्ते भूँकने लगे हैं
रात गहराती जा रही
नींद हाथों के ज़द से 
छिटकती जा रही
धन का हेर फेर करके 
भगवान को यादकर 
पड़ोसी भृष्टाचारी के गूँज रहे खर्राटे
ये नींद इतनी आसान क्यों है 
कुछ लोगों के लिए
और इतनी मुश्किल क्यों है
मेरे लिए!

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