जोड़ दो जब जिससे चाहे हमारा नाम
और उन लोगों का नाम भी
जिनने की बात हमारे हक में
और हम हैं कि कितना भी रोयें
छाती पीटें, छनछ्नाएं, कु्लबुलायें
जिससे तनिक भी न डोले उनका मन
जोड़ दो जब जिससे चाहे हमारा नाम
अब कैसे बताएं कि हम हैं कौन
हम वे तमाम लोग हो सकते हैं
जो रहते हरदम शक के दायरे में
जिनके नाम सुनकर चुप हो जाते वे
या अचानक तैश में आ जाते वे
या तिरस्कार से बिसोरते मुंह
या उनमें बढ़ जाती सरगोशियाँ
कि हर हाल में हमारी सक्रिय उपस्थिति
सहने को जैसे मजबूर हैं वे
उनकी तिलमिलाहट से हम जैसे लोग
प्रतिरोध के औज़ार चमकाने लगते हैं
और ये औज़ार हैं कागज़-कलम, तूलिका
विचार, शब्द, दृष्टि, छेनी-हथोडी
और इन सबके साथ सच कहने का साहस
जोड़ दो जब जिससे चाहे हमारा नाम
प्रतिकूलताओं में ही चलता हमारा काम....
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