बुधवार, 13 दिसंबर 2017

खोखली सांत्वना...

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आ रहे ढाढ़स बंधाने लोग
ऐसा नहीं कि निभा रहे हों रस्म
वे दिल से दुखी हैं
उतने ही डरे हुए भी
जितना कि हम हैं खौफ़जदा
आए हैं वे सभी लोग सांत्वना देने
जो धार्मिक हैं लेकिन धर्मांध नहीं
उनमें कई नास्तिक भी हैं
ये सभी दुखी हैं और डरे हुए भी
लेकिन हम समझें अगर
तो ये सभी शर्मिन्दा भी हैं
शर्मिन्दा इसलिए भी कि अब लगता है
बेशर्मी ही जीता करेगी हमेशा
हां, यह अलग बात है
कि अपनी ही आवाज़ उन्हें
बेजान सी लगती है
सांत्वना देने वाले भी
जैसे जानते हैं कितने
खोखले होते हैं शब्द

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