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Thursday, December 7, 2017

अपमान की बरसी



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हम इंतज़ार नहीं करते
फिर भी, हर बरस आती है
हमारे लिए अवसाद, हताशा, अपमान की बरसी
उद्दंडता, निर्लज्जता, बेहयाई की बरसी
हम याद नहीं करते
फिर भी, हर बरस आकर
अहसास करा जाती है
कि कैसे टूटते हैं दिल
कैसे होती है विश्वास का कत्ल
जिसे बड़ी मुद्दत से संजोकर
बारीकी से एक धागे में पिरोकर
हजारों साल के लिए संरक्षित किया गया था
हम भूलना चाहते हैं
एक नये कल की आस में
मिटाना चाहते हैं अतीत के निशाँ
फिर भी हर बरस सुनाई जाती है
उन अनकिये गुनाहों की फेहरिस्त
जिनसे हमारा कोई लेना-देना नहीं
हमारा वजूद बना दिया गया कितना गैर-ज़रूरी
हम बार-बार
बताना चाहते हैं कि हमारी मौजूदगी
कोई ऐतिहासिक मजाक नहीं है भाई
हम सच में इस बगिया का हिस्सा हैं
मिटटी, हवा, पानी और धूप पर
उतना ही हक़ है हमारा
जितना कि तुम्हारा है......

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